नैनीताल। कोरोना के मामले कम होने पर सभी व्यवस्थाएं पटरी पर आने लगी हैं। इसी को देखते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक अधिसूचना जारी कर 24 अगस्त से भौतिक सुनवाई फिर से शुरू करने और वर्चुअल सुनवाई बंद कर दी थी। मगर कई अधिवक्ताओं को यह अधिसूचना रास नहीं आई। अब इसके खिलाफ 5000 से अधिक वकीलों के साथ ऑल इंडिया ज्यूरिस्ट एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि वर्चुअल कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के अनुसार न्याय का एक आसान और किफायती रूप है और वकीलों को इस तरह फिजीकली पेश होने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। याचिकाकर्ता का कहना है कि न केवल उत्तराखंड उच्च न्यायालय के समक्ष, बल्कि वकीलों को मुंबई, केरल आदि जैसे कई उच्च न्यायालयों के समक्ष शारीरिक रूप से पेश होने के लिए मजबूर किया जा रहा है। वकीलों को प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे की कमी के आधार पर इस तरह पेश होने के लिए नहीं कहा जा सकता है।
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि हम सूचना प्रौद्योगिकी के युग में रहते हैं और एक तकनीकी क्रांति के साक्षी हैं, जो हमारे जीवन के लगभग हर पहलू में मौजूद है। याचिका में कहा गया है कि न्याय तक पहुंच बढ़ाने और सुशासन को बढ़ावा देने के लिए राज्य द्वारा प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से यह सुनिश्चित करने के लिए उच्च न्यायालयों को निर्देश देने की भी अपील की है कि वकीलों को किसी मामले की कार्यवाही में भाग लेने से केवल इसलिए इनकार नहीं किया जाता है, क्योंकि उन्होंने वर्चुअल सुनवाई का विकल्प चुना है। याचिकाकर्ता ने वर्चुअल सुनवाई में भाग लेने के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने की मांग की है।