भारत में जिन खेलों की कमेंट्री नहीं होती, वह लुप्त होने के कगार पर: नरेंद्र मोदी

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दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात में एक बार फिर कोरोना महामारी को हराने के लिए नियमों का सख्ती से पालन करने को कहा। उन्होंने कहा कि अब त्योहारों का सीजन शुरू हो रहा है, सब देश वासियों को शुभकामनाएँ दी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मार्च का महीना हमारे फाइनेंशियर ईयर का आखिरी महीना भी होता है, इसलिए, आप में से बहुत से लोगों के लिए काफी व्यस्तता भी रहेगी।
मेरे प्यारे युवा साथियो, आने वाले कुछ महीने आप सब के जीवन में विशेष महत्व रखते हैं। मार्च में होने वाली ‘परीक्षा पे चर्चा’ से पहले मेरी आप सभी एग्जाम वॉरियर्स से, पैरेंट्स से, और टीचर्स से, रिक्वेस्ट है कि अपने अनुभव, अपने टिप्स जरूर शेयर करें। आप मायगोव और नरेंद्र मोदी एप पर शेयर कर सकते हैं।
हमने देखा है कि जिन खेलों में कमेंट्री समृद्ध है, उनका प्रचार-प्रसार बहुत तेजी से होता है। हमारे यहां भी बहुत से खेल हैं लेकिन उनमें कमेंट्री कल्चर नहीं आया है और इस वजह से वो लुप्त होने की स्थिति में है।
पीएम से हैदराबाद की एक महिला ने पूछा सवाल
यह एक ऐसी सुंदर भाषा है, जो दुनिया भर में लोकप्रिय है। बहुत से लोगों ने मुझे तमिल लिटरेचर की क्वालिटी और इसमें लिखी गई कविताओं की गहराई के बारे में बहुत कुछ बताया है। दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल सीखने के लिए बहुत प्रयास नहीं कर पाया, मैं तमिल नहीं सीख पाया।
मैंने इस सवाल पर विचार किया और खुद से कहा मेरी एक कमी ये रही कि मैं दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा– तमिल सीखने के लिए बहुत प्रयास नहीं कर पाया, मैं तमिल नहीं सीख पाया। 
कुछ दिन पहले हैदराबाद की अपर्णा रेड्डी जी ने मुझसे ऐसा ही एक सवाल पूछा। उन्होंने कहा कि– आप इतने साल से पीएम हैं, इतने साल सीएम रहे, क्या आपको कभी लगता है कि कुछ कमी रह गई। अपर्णा जी का सवाल बहुत सहज है लेकिन उतना ही मुश्किल भी। कभी-कभी बहुत छोटा और साधारण सा सवाल भी मन को झकझोर जाता है। ये सवाल लंबे नहीं होते हैं, बहुत सिंपल होते हैं, फिर भी वे हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं।
कुछ लोग समझते हैं कि इनोवेशन करने के लिए आपका साइंटिस्ट होना जरूरी है, कुछ सोचते हैं कि दूसरों को कुछ सिखाने के लिए आपका टीचर होना जरूरी है। इस सोच को चुनौती देने वाले व्यक्ति हमेशा सराहनीय होते हैं।
असम में हमारे मंदिर भी, प्रकृति के संरक्षण में, अपनी अलग ही भूमिका निभा रहे हैं, यदि आप, हमारे मंदिरों को देखेंगे, तो पाएंगे कि हर मंदिर के पास तालाब होता है। हजो में हयाग्रीव मधेब मंदिर, सोनितपुर के नागशंकर मंदिर और गुवाहाटी में उग्रतारा मंदिर के पास इस प्रकार के तालाब हैं। इनका उपयोग विलुप्त होते कछुओं की प्रजातियों को बचाने के लिए किया जा रहा है।

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