हल्द्वानी। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में लगातार दूसरे दिन कर्मचारी कार्य बहिष्कार पर अड़े रहे। इस बीच विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ दो राउंड की बातचीत बेनतीजा रही और कर्मचारियों की मांगों से झुंझलाये कुलपति बीच मीटिंग में से उठकर चले गये. इस बात से कर्मचारियों की नाराज़गी और बढ़ गई है। कर्मचारी संगठन ने ऐलान किया है कि उनका आंदोलन मांगें पूरी होने तक जारी रहेगा। विश्वविद्यालय मुख्यालय के अलावा सभी आठ क्षेत्रीय केंद्रों के कर्मचारी भी राज्यभर में कार्य बहिष्कार पर रहे। कर्मचारियों के हड़ताल पर रहने पर विश्वविद्यालय और क्षेत्रीय केंद्रों में काम से आने वाले छात्रों को लगातार दूसरे दिन भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा और विश्वविद्यालय के बाक़ी काम भी बुरी तरह प्रभावित रहे।
दो सफाई कर्मियों को निकाले जाने और छह कर्मचारियों के नियमितीकरण को लटकाने के ख़िलाफ़ कर्मचारी दिनभर गुस्से में दिखे और उन्होंने प्रशासनिक गेट के सामने धरना, प्रदर्शन और सभा की। विश्वविद्यालय में अफरा-तफ़री के बीच प्रशासन ने दो बार आंदोलरत कर्मचारियों से बात की लेकिन मामले का कोई हल नहीं निकल पाया. कुलपति से हुई कर्मचारियों की मींटिंग में उन्होंने मांगें मानने से हाथ खड़े कर दिये. कर्मचारियों की बातों को ध्यान से सुनने के बजाय वे बीच मींटिंग से ही झुंझलाकर चले गये। कर्मचारियों का कहना है कि ये घटना बताती है कि विश्वविद्यालय प्रशासन कर्मचारियों की मांगों को लेकर कितना संवेदनशील है।
विश्वविद्यालय मुख्यालय में चल रहे आंदोलन के समर्थऩ में राज्यभर के 8 केंद्रों के कर्मचारी भी कार्य बहिष्कार पर रहे. जिस वजह से राज्य के देहरादून, उत्तरकाशी, पौड़ी, पिथौरागढ़, रुड़की, रानीखेत और बागेश्वर केंद्रों पर विश्वविद्यालय का काम ठप रहा।
विश्वविद्यालय में 24 मार्च से परीक्षाएं होनी हैं ऐसे में कर्मचारियों के आंदोलन में कूदने से विश्वविद्यालय प्रशासन के नाक में दम हो गया है. लेकिन वर्षों से कर्मचारियों की मांगों की अनदेखी का मामला अब केंद्र मे आ गया है. कर्मचारी संगठन ने कहा है कि वे अपनी जायय मांगों को लेकर विभिन्न सामाजिक संगठनों से भी संपर्क करेंगे और राज्य के जन प्रतिनिधियों के सामने भी अपनी मांगों को रखेंगे.
आंदोलनकारियों का कहना है कि पिछले तीन वर्षों के दौरान विश्वविद्यालय में बड़े पैमाने पर नियुक्तियां हुई हैं जिन पर अनियमितताओं का आरोप लगता रहा है. लेकिन जो कर्मचारी विश्वविद्यालय की स्थापना के समय से ही काम कर रहे हैं उनके ऊपर कई अयोग्य लोगों का बिठा दिया गया है. पुराने कर्मचारियों की इस अनदेखी से आंदोलकारियों में गुस्सा है. कर्मचारियों का कहना है कि जब तक उनकी दस सूत्रीय मांगों को नहीं माना जाएगा वे प्रशासन के सामने नहीं झुकेंगे.
विश्वविद्यालय में कई कर्मचारी दैनिक वेतन भोगी हैं. ऐसे कर्मचारियों पर प्रशासन लगातार दबाव बनाये रखता है. कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष राजेश आर्या ने कहा है कि सभी को समान काम के बदले समान वेतन दिया जाना चाहिए और कर्मचारियों को दैनिक तौर पर भर्ती करने के बजाय उन्हें सम्मानजनक तौर पर नियोजित किया जाना चाहिए. आर्थिक सुरक्षा के बिना कोरे आश्वासनों का झुनझुना कर्मचारियों के किसी का काम का नहीं है.
इस बीच विश्वविद्यालय में योजना बोर्ड की मीटिंग भी सम्पन्न हुई. कर्मचारी नेताओं का कहना है कि आम कर्मचारियों की उपेक्षा करके विश्वविद्यालय के विकास की योजना बनाना महज एक छलावा है।
मुक्त विश्वविद्यालय नियुक्तियों में भ्रष्टाचार को लेकर लगातार चर्चा में रहा है ऐसे में कर्मचारियों के बीच असंतोष है. उऩका कहना है कि अपने चहेते और राजनीतिक संरक्षण प्राप्त लोगों को नियुक्ति दी जा रही है इसलिए आम कर्मचारियों को अपने अधिकारों के लिए सामने आना पड़ा है।
कर्मचारियों ने सभा में कहा कि उनकी एकजुटता को तोड़ने की कोशिश सफल नहीं होने दी जाएगी. धरना-प्रदर्शन का नेतृत्व मुख्य रूप कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष राजेश आर्या, राहुल नेगी, योगेश मिश्रा,चारू जोशी, पंकज बिष्ट, उमेश खनवाल, निर्मल धौनी, रमन लोशाली, पूजा चौबे, मधु डोगरा, छाया देवी, पूनम खोलिया, मोहन बवाड़ी, दिनेश कुमार आदि कर रहे थे. इऩके साथ बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के लोग धऱने पर बैठे रहे।
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (यूटा) अध्यक्ष भूपेन सिंह ने भी कर्मचारियों की मांगों को जल्दी पूरा करने को कहा है।
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