हरिद्वार। मोदी सरकार जबसे सत्ता में आई है, उसपर शिक्षा का भगवाकरण करने का आरोप लग रहा है। अब इन आरोपों को लेकर उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा है कि शिक्षा का भगवाकरण करने में क्या गलत है।
भारत के उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने एक कार्यक्रम में कहा कि देश के लोगों को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। लोगों को “औपनिवेशिक मानसिकता” को छोड़ना होगा और अपनी पहचान पर गर्व करना सीखना होगा। उन्होंने शिक्षा की मैकाले प्रणाली को पूरी तरह से खारिज करने का आह्वान करते हुए कहा कि इसने देश में शिक्षा के माध्यम के रूप में एक विदेशी भाषा को थोप दिया और शिक्षा को अभिजात वर्ग तक सीमित कर दिया है।
उपराष्ट्रपति नायडू ने शिक्षा प्रणाली को लेकर कहा कि बीजेपी पर शिक्षा का भगवाकरण करने का आरोप हैं, लेकिन फिर भगवा में क्या गलत है? सर्वे भवन्तु सुखिनः और वसुधैव कुटुम्बकम, जो हमारे प्राचीन ग्रंथों में निहित दर्शन हैं, भारत की विदेश नीति आज भी इसी सिद्धांत पर है।
उपराष्ट्रपति ने कहा- “सदियों के औपनिवेशिक शासन ने हमें खुद को एक निम्न जाति के रूप में देखना सिखाया। हमें अपनी संस्कृति, पारंपरिक ज्ञान का तिरस्कार करना सिखाया गया। इसने एक राष्ट्र के रूप में हमारे विकास को धीमा कर दिया। हमारे शिक्षा के माध्यम के रूप में एक विदेशी भाषा को लागू करने से शिक्षा सीमित हो गई। समाज का एक छोटा वर्ग, शिक्षा के अधिकार से एक विशाल आबादी को वंचित कर रहा है।”
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने हरिद्वार में देव संस्कृति विश्व विद्यालय में एक कार्यक्रम के दौरान अपने संबोधन में ये बातें कही। वेंकैंया नायडू ने आगे कहा कि हमें अपनी विरासत, अपनी संस्कृति, अपने पूर्वजों पर गर्व महसूस करना चाहिए और हमें अपनी जड़ों की ओर वापस जाना चाहिए। उन्होंने कहा- “हमें अपनी औपनिवेशिक मानसिकता को त्यागना चाहिए और अपने बच्चों को उनकी भारतीय पहचान पर गर्व करना सिखाना चाहिए। हमें अपनी मातृभाषा से प्रेम करना चाहिए। हमें अपने शास्त्रों को जानने के लिए संस्कृत सीखनी चाहिए, जो ज्ञान का खजाना हैं।”
उपराष्ट्रपति नायडू ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षा प्रणाली का भारतीयकरण, देश की नई शिक्षा नीति का केंद्र है, जो मातृभाषाओं को बढ़ावा देने पर बहुत जोर देती है। उन्होंने कहा कि वो उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जिस दिन सभी गैजेट अधिसूचनाएं संबंधित राज्य की मातृभाषा में जारी की जाएंगी।