नोएडा। देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा में वो हुआ, जो यहां कभी नहीं हुआ था। नोएडा के सेक्टर 93 ए में बने SuperTech ट्विन टावर को अवैध तो पहले ही घोषित किया गया था। आज यानि 28 अगस्त को इसे जमींदोज कर दिया गया। यह पहली बार हो था जब देश में इतने बड़े भवन को बारूद लगाकर उड़ाया गया। डिमोलिशन एक्सपर्ट चेतन दत्ता इस ब्लास्ट का बटन दबाया। बटन दबाने के 12 सेकंड में ही ट्विन टावर जमींदोज हो गया।
नोएडा में बने 32 मंजिला ट्विन टावर 28 अगस्त 2022 को दोपहर ढाई बजे गिरा दिए गया। 13 साल में बनी दोनों इमारतें टूटने में सिर्फ 12 सेकेंड लगें। कुतुब मीनार से ऊंचे ट्विन टावर के तोड़ने का जिम्मा एडिफाइस नाम की कंपनी को मिला था। बिल्डिंग में 3700 किलो बारूद भरा गया था। पिलर्स में लंबे-लंबे छेद करके बारूद भरा गया था। फ्लोर टू फ्लोर कनेक्शन भी किया जा चुका था।
ट्विन टावर के खिलाफ बायर्स ने बिल्डर के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी है। 31 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने ट्विन टावर को अवैध घोषित किया। कोर्ट ने माना कि इसे बनाने में नियमों की धज्जियां उड़ी हैं। इसके बाद इसे गिरा देने का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दिया। वैसे तो कोर्ट ने सिर्फ तीन माह का वक्त दिया था। लेकिन इसे गिराने में एक साल का वक्त लग गया।
इस बिल्डिंग के नक्शे में कई बार बदलाव आए। लगातार आते बदलावों में इसकी ऊंचाई भी बढती गई। 23 नवंबर 2004 को नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर 93ए में ग्रुप हाउसिंग का प्लॉट नंबर 4 एमराल्ड कोर्ट को आवंटित किया। तब अथॉरिटी ने सोसाइटी को 14 टावर का नक्शा दिया। इसमें ग्राउंड के साथ नौ मंजिल तक पास किया गया था। 29 दिसंबर 2006 को नोएडा अथॉरिटी ने ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी के प्रोजेक्ट में पहला संशोधन किया और दो मंजिल बढ़ा दिए। नए संशोध में 11 मंजिल बनाने का नक्शा पास हो गया। इसके बाद भी संशोधन हुए। टावरों की संख्या 16 कर दी गई और 11 मंजिल 37 मीटर की ऊंचाई तय हुई। 26 नवंबर 2009 को नोएडा अथॉरिटी ने टावर नंबर 17 का नक्शा पास किया। इसमें टावर नंबर 16 और 17 पर 24 मंजिल निर्माण का नक्शा बनाया गया। इन दोनों की ऊंचाई 73 मीटर तय कर दी गई। 2 मार्च 2012 को टावर नंबर 16 और 17 के लिए FAR और बढ़ा दिया गया। इसके बाद दोनों टावर की ऊंचाई 40 मंजिल तक करने की इजाजत दे दी गई। ऊंचाई 121 मीटर तय की गई। यानि जिन टावर्स की ऊंचाई शुरुआत में 37 मीटर थी, बाद में संशोधनों के बाद वे 121 मीटर तक पहुंच गए।
नैशनल बिल्डिंग कोड के अनुसार दो रेसिडेंशियल टावर्स के बीच की दूरी कम से कम 16 मीटर की होनी चाहिए। लेकिन इस प्रोजेक्ट में इस नियम का खुला उल्लंघन हुआ। टावर नंबर 1 और ट्विन टावर के बीच की दूरी नौ मीटर से भी कम थी। यानि तय मानकों के आधी ही दूरी रखी गई थी।
सोसाइटी के फ्लैट बायर्स का कहना था कि 2008 में ट्विन टावर को खाली स्पेस बताया गया था। लेकिन बाद में स्थिति अलग दिखी। इसलिए आरडब्ल्यूए के गठन के बाद लड़ाई का फैसला हुआ। बायर्स के विरोध के बाद भी ट्विन टावर का अवैध निर्माण होता रहा। पहले बायर्स नोएडा अथॉरिटी पहुंचे। लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद कोर्ट में मामला गया। 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टावर को तोड़ने का आदेश दे दिया। इसके बाद लड़ाई चलती रही और भ्रष्टाचार का यह टावर आज जमींदोज किया गया।