दिल्ली। बाकी देशों की तुलना में कोरोना वायरस का भारत में असर एकदम अलग दिख रहा है। इस बहुरूपिया वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी भारतीयों को लंबे समय तक सुरक्षित नहीं रख पा रही है। इसीलिए लोगों को दोबारा से संक्रमण भी हो रहा है।
आईसीएमआर के अनुसार, देश में अब तक 4.5 फीसदी (पांच लाख) से अधिक लोगों को एक से अधिक बार संक्रमण हो चुका है।
संक्रमित मरीजों में विकसित होने वाली एंटीबॉडी को लेकर पहली बार वैज्ञानिकों के हाथ कामयाबी मिली है। इनके अनुसार चार में से एक व्यक्ति में 150 दिन भी एंटीबॉडी टिक नहीं सकीं। संक्रमित होने के 60 दिन बाद इन लोगों के शरीर में प्लाज्मा भी धीरे धीरे बेअसर होने लगा। वैज्ञानिकों का यहां तक मानना है कि भारत में कोरोना वायरस को लेकर स्थिति सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक गंभीर है।
सीएसआईआर के वैज्ञानिकों ने राष्ट्रीय स्तर पर एक सीरो सर्वे किया है जिसमें उन्हें पता चला है कि देश के कई हिस्सों में वायरस का स्थानीय प्रसार हुआ है। लोग एक दूसरे से संपर्क में आने के बाद संक्रमित हुए हैं।
नई दिल्ली स्थित आईजीआईबी के निदेशक डॉ. अनुराग अग्रवाल का कहना है कि अध्ययन में पता चला, वायरस की चपेट में आने वालों में 30 प्रतिशत तक ऐसे मिले हैं जिनके शरीर में 150 से 180 दिन भी एंटीबॉडी टिक नहीं पाई हैं। यह सभी वे लोग हैं जिन्हें संक्रमित होने की जानकारी तक नहीं थी। कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनमें तीन महीने में ही एंटीबॉडी खत्म हो गईं। इतना ही नहीं बिना लक्षण वाले रोगियों में एंटीबॉडी के बेहद कमजोर स्तर का भी पता चलता है
वैज्ञानिकों का कहना है कि एंटीबॉडी कम होने का सीधा मतलब यही है कि कोरोना वायरस से बचाव लंबे समय तक नहीं हो सकता। इससे देश में दोबारा संक्रमण का खतरा भी बढ़ सकता है। वहीं आईसीएमआर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि देश में दोबारा से कोरोना संक्रमण होने के मामलों में तेजी आई है।
देश में अब तक 10 फीसदी से अधिक आबादी के संक्रमित होने की आशंका। रिकवर होने वाले में 60 से 90 दिन तक ठीक मिलीं एंटीबॉडी, लेकिन प्लाज्मा का स्तर गिरता मिला।
150 से 180 दिन में 20 से 30 फीसदी लोग खो चुके थे एंटीबॉडी, इन्हें दोबारा से संक्रमण होने का खतरा भी बढ़ा।
इस साल जनवरी से 31 मार्च तक सबसे ज्यादा दोबारा संक्रमण के केस सामने आए।