देहरादून। उत्तराखंड में तीनों ऊर्जा निगमों के कर्मचारी आज रात 12 बजे से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जा रहे हैं। रविवार को उन्होंने जनता से अपील की है कि बत्ती गुल होने की स्थिति से निपटने के लिए पहले ही इंतजाम कर लें, क्योंकि कोई भी बिजली कर्मचारी काम नहीं करेगा।
सोमवार को ऊर्जा निगमों के 10 संगठनों के 3500 से अधिक कर्मचारी एक साथ अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे। इन संगठनों ने मिलकर विद्युत अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा बनाया हुआ है, जिसके संयोजक इंसारुल हक का कहना है कि जब तक सरकार उनकी मांगें नहीं मानेगी, वह आंदोलन से पीछे नहीं हटेंगे। वहीं, ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे भी रविवार को देहरादून पहुंच गए।
उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र भेज कर चेताया है कि यदि उत्तराखंड के बिजली कर्मिकों का उत्पीड़न किया जाता है तो देश के 15 लाख बिजली कर्मी मूक दर्शक नहीं रहेंगे। उत्तराखंड के बिजली कर्मियों के समर्थन में यथा आवश्यक कदम उठाने के लिए बाध्य होंगे। जिसकी पूरी जिम्मेदारी उत्तराखंड सरकार की होगी। उन्होंने कहा कि ऊर्जा कर्मियों का आंदोलन पूर्णत: शांतिपूर्ण है। वह लगातार प्रबंधन और सरकार के सामने शांतिपूर्वक अपनी मांगें रख रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है। इस दौरान हुई आम सभा में उपनल संविदा और सेल्फ हेल्प कार्मिकों के समान कार्य के लिए समान वेतन देने, विभिन्न भत्ते देने और अन्य 14 सूत्री मांगों को लेकर 26 जुलाई की रात 12 बजे से हड़ताल शुरू करने का संकल्प लिया गया।
किसी को प्रताड़ित किया तो जेल भरेंगे
मोर्चा ने यह निर्णय लिया है कि अगर ऊर्जा प्रबंधन व सरकार द्वारा किसी भी ऊर्जा कार्मिक को प्रताड़ित किया जाता है या उसका उत्पीड़न किया जाता है या गिरफ्तार करने की कोशिश की जाती है तो सभी ऊर्जा कर्मचारी सामूहिक रूप से जेल भरो आंदोलन शुरू कर देंगे। जिसकी पूर्ण और पूर्ण जिम्मेदारी ऊर्जा प्रबंधन व सरकार की होगी।
कहा कि ऊर्जा निगम के कार्मिक पिछले चार सालों से एसीपी की पुरानी व्यवस्था तथा उपनल के माध्यम से कार्योजित कार्मिकों के नियमितीकरण एवं समान कार्य हेतु समान वेतन को लेकर लगातार सरकार से वार्ता कर रहे हैं। 22 दिसंबर 2017 को कार्मिकों के संगठनों तथा सरकार के बीच द्विपक्षीय समझौता हुआ परंतु आज तक उस समझौते पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। ऊर्जा निगम के कार्मिक इस बात से क्षुब्ध हैं कि सातवें वेतन आयोग में उनकी पुरानी चली आ रही 9-5-5 की एसीपी व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है, जो कि उन्हें उत्तर प्रदेश के समय से ही मिल रहीं थीं। यही नहीं पे मैट्रिक्स में भी काफी छेड़खानी की गई। संविदा कार्मिकों को समान कार्य समान वेतन के विषय में कोई कार्यवाही नहीं हुई। इसके अतिरिक्त ऊर्जा निगमों में इंसेंटिव एलाउंसेस का रिवीजन नहीं हुआ।