उत्तराखंड में आशा कार्यकर्ताओं का आंदोलन हुआ तेज, सरकारी कर्मचारी का दर्जा दैने की मांग ने जोर पकङा

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हल्द्वानी। उत्तराखंड में कार्यबहिष्कार कर आंदोलित आशा वर्करों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा और न्यूनतम 21 हजार वेतन लागू करने की मांग ने जोर पकङ लिया है।
संगठन ने स्पष्ट किया है कि जब तक मासिक वेतन और कर्मचारी का दर्जा नहीं मिलता तब तक आशाओं को भी आंगनबाड़ी जैसी अन्य स्कीम वर्कर्स की तरह मासिक मानदेय फिक्स किया जाय। कहा है कि सभी आशाओं को सेवानिवृत्त होने पर पेंशन का प्रावधान किया जाय। जिन आशाओं की पैदल ड्यूटी करते करते घुटनों में दिक्कतें आ गई हैं उनके लिए एक मुश्त पैकेज की घोषणा की जाय, कोविड कार्य में लगी सभी आशा वर्करों कोरोना ड्यूटी की शुरुआत से 10 हजार रूपए मासिक कोरोना-भत्ता भुगतान किया जाय समेत बारह सूत्रीय मांगों और आशाओं की समस्याओं का समाधान करने के लिए चल रहे आंदोलन के तहत आशा वर्कर्स ने ऐक्टू से संबद्ध उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन के बैनर तले चौथे दिन भी जोरदार धरना प्रदर्शन किया।
उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष कमला कुंजवाल ने कहा कि, “आशाओं का काम आंगनबाड़ी से कराने के बजाय आंगनबाड़ी की तरह आशाओं को मानदेय दे सरकार।”
उन्होंने कहा कि, “जिस सरकार का काम शोषण से रक्षा का है वही सरकार खुद आशाओं के श्रम का लगातार कर रही है, यह बेहद शर्मनाक है।”
“इस बार पूरे राज्य की आशाएँ एक साथ आंदोलन में हैं और इस बार आरपार की लड़ाई लड़ी जायेगी। आपने हक और सम्मान की लड़ाई लड़ रही आशाएँ एकता और संघर्ष के बल पर अवश्य जीतेंगी। राज्य के मुख्यमंत्री तत्काल आशाओं की मासिक वेतन की मांग को पूरा करें अन्यथा हड़ताल जारी रहेगी।”
समर्थन में पहुँचे अखिल भारतीय किसान महासभा के वरिष्ठ नेता बहादुर सिंह जंगी ने आशाओं की हड़ताल का समर्थन करते हुए कहा कि, “गर्मी, जाड़ा, बरसात हर मौसम में अपनी सुरक्षा की परवाह किये बिना आशाएँ स्वास्थ्य विभाग के कार्यों में जुटी रहती हैं। कोरोना के समय जब सब लोग घरों में कैद थे आशाओं ने जागरूकता का काम किया। होना तो यह चाहिये था कि आशाओं को इसका श्रेय देते हुए मासिक वेतन दिया जाता लेकिन इसके बजाय सरकार की उदासीनता और गलत नीतियों के चलते आशाओं को हड़ताल पर विवश होना पड़ा है। यह सरकार की नाकामी है इसलिए सरकार को तत्काल आशाओं की माँगों को मानते हुए उनको मासिक वेतन और कर्मचारी का दर्जा देने की बात मान लेनी चाहिए।”
रिंकी जोशी ने कहा कि, “आशाओं को भाजपा की सरकार आने के बाद और भी ज्यादा कामों में उलझा दिया गया है लेकिन वेतन या मानदेय नहीं दिया जा रहा है। यह महिला विरोधी सरकार है। यह सरकार महिला श्रम का खुला शोषण कर रही है। लेकिन आशाओं का शोषण अब नहीं चलेगा, आशा वर्कर्स एकजुट होकर संघर्ष के बल पर अपना अधिकार हासिल करके रहेंगी।”
धरना प्रदर्शन कार्यक्रम में रीना बाला, सरोज रावत, भगवती बिष्ट, रेशमा, रीनू,मंजू, इंद्रा, दीपा बिष्ट,मनीषा, कमला, शाइस्ता, सहाना, माया, मीना, पुष्पा, रजनी समेत बड़ी संख्या में आशा वर्कर्स मौजूद रही।

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