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सागर की कुण्डलियाँ………
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( १ )
उर की धड़कन है नई ,
नवल साँस की माल ।
ज्योति नयन की है नई ,
नमन तुझे गोपाल ।।
नमन तुझे गोपाल ,
दया का सागर है तू ।
नेह न होता क्षीण ,
नेह की गागर है तू ।।
कह सागर कविराय ,
करूँ नित तेरा सुमिरन ।
तुझसे ही है साँस ,
तुझी से उर की धड़कन ।।
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( २ )
मधुरिम ऊषा दी हमें ,
है तेरा उपकार ।
साँसों की माला तले ,
देख रहा संसार ।।
देख रहा संसार ,
जगत पर ऋण है भारी ।
तुझसे ही ये धरा ,
हरि सदा है उजियारी ।।
कह सागर कविराय ,
दिशा पूरब की स्वर्णिम ।
पाकर किरणें लगे ,
धरा ये कितनी मधुरिम ।।
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©️डा० विद्यासागर कापड़ी
सर्वाधिकार सुरक्षित
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