*मनोज लोहनी*
हल्द्वानी। 4 मार्च 2021 के दिन उत्तराखंड राज्य के लिए इतिहास में दर्ज हो गया। इसलिए नहीं कि इस दिन मुख्यमंत्री ने गैरसेंण में नई कमिश्नरी बनाने की घोषणा की, बल्कि इसलिए कि नई कमिश्नरी के इस धागे से जब त्रिवेंद्र ने कुमाऊं और गढ़वाल को बांधा तो दोनों मंडलों के बीच का राजनीतिक भेदभाव भी एक झटके में खत्म हो गया। कुमाऊं के चार जिलों को मिलाकर नई कमिश्नरी बनाने के साथ ही कुमाऊं, गढ़वाल में नए जिलों की मांग पर भी सीएम की इस घोषणा के साथ फिलहाल पूर्ण विराम लग गया है।
मुख्यमंत्री की इस दूरदर्शी सोच के बारे में बजट पेश होने से पहले किसी को बिलकुल भी भनक तक नहीं लगी। लोगों को इस बात का इंतजार था कि राज्य के पेश होने वाले बजट में क्या नई घोषणाएं शामिल होंगी। मगर मुख्यमंत्री ने गैरसेंण में कमिश्नरी बनाने की घोषणा कर एक तीर से कई निशाने साध लिए। नई कमिश्नरी में कुमाऊं के अल्मोड़ा, बागेश्वर और गढ़वाल के चमोली, रुद्रप्रयाग जिलों को शामिल किया गया है। चूंकि दोनों मंडलों से दो जिले इसमें शामिल किए हैं, लिहाजा अब दो नहीं बल्कि तीन मंडलों की नई कमिश्नरी होगी जिसमें कुमाऊं, गढ़वाल दोनों शामिल होंगे। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से अब तक के रिकॉर्ड बताते हैं कि यहां चाहे चुनाव हों, मुख्यमंत्री की नियुक्ति हो या फिर प्रदेश अध्यक्ष की, यह बातें सामने आती थीं कि सीएम अगर गढ़वाल से है तो प्रदेश अध्यक्ष कुमाऊं से। यह फार्मूला यहां अब भी लागू है। यह बात राज्य की दोनों बड़ी पार्टियों कांग्रेस, भाजपा में समान रूप से लागू होती थी। आम लोगों को इस बात से सरोकार भले ही नहीं हो, मगर राजनीतिक दलों के एजेंडे का यह हिस्सा जरूर हुआ करता था। न केवल सीएम, प्रदेश अध्यक्ष बल्कि कुमाऊं, गढ़वाल से मंत्रियों की संख्या भी तय होती थी। मंत्रिमंडल गठन के वक्त इस बात का ध्यान रखा जाता है कि मंत्रियों की संख्या के लिहाज से कुमाऊं, गढ़वाल में संतुलन हो। कांग्रेस, भाजपा में संगठनात्मक चुनाव तक में कुमाऊं, गढ़वाल में सामंजस्य बिठाने की बात होती थी। अफसरों की तैनाती से लेकर अन्य तमाम मुद्दों पर भी कुमाऊं, गढ़वाल की तुलना की जाती थी। अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसेंण में नई कमिश्नरी की घोषणा की तो उसमें कुमाऊं, गढ़वाल से दो-दो जिले शामिल कर इस भेद को खत्म कर दिया है।
गैरसेंण में कमिश्नरी की घोषणा के बाद अब तक विपक्ष समेत तमाम क्षेत्रीय दल गैरसेंण की उपेक्षा का सरकार पर आरोप लगाते रहते थे। मगर कमिश्नरी के बाद इस बात पर विराम लग गया है। चूंकि कमिश्नरी के साथ नए मंडल में डीआईजी रेंक का पुलिस अधिकारी भी बैठेगा, लिहाजा फिलहाल विपक्ष के पास गैरसेंण की उपेक्षा जैसा कहने को कोई बहाना नहीं बचा। (साभार अमृत विचार)