वैदिक संस्कृति और संस्कार भारत की आत्मा-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

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परमार्थ निकेतन में नटराज मन्दिर के प्रधान पुजारी राजा दीक्षितार जी और  शिवसुब्रमण्यन मुथुरमन जी पधारे
 
परमार्थ निकेतन में नटराज मन्दिर की ओर से विशाल भण्डारा का आयोजन
 
वैदिक संस्कृति और संस्कार भारत की आत्मा-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

हरिशंकर सैनी
ऋषिकेश, (देहरादून) परमार्थ निकेतन मे नटराज मंदिर के प्रधान पुजारी राजा दीक्षितार जी और शिवसुब्रमण्यन मुथुरमन जी पधारे, उन्होंने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से भेंट वार्ता कर चिदंबरम नटराज मंदिर में दर्शन हेतु विशेष रूप से आमंत्रित किया।
विश्व विख्यात नटराज मन्दिर जिसे चिदंबरम नटराज मन्दिर और थिल्लई नटराज मंदिर भी कहा जाता है, यह एक विश्व प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है जो नृत्य करते  भगवान शिव के दिव्य स्वरूप को समर्पित है। यह दक्षिण भारत के प्राचीन मन्दिरों में से एक है।
परमार्थ निकेतन गंगा तट पर राजा दीक्षितार जी और शिवसुब्रमण्यन मुथुरमन जी ने विशाल भण्डारा का आयोजन किया। स्वामी जी ने कहा कि दक्षिण भारत और उत्तर भारत के मध्य सेतु; बन्धन के लिये वृक्षारोपण, महिला सशक्तिकरण, नदियों का संरक्षण, भारतीय संस्कृति और संस्कारों के रोपण हेतु मिलकर कार्य किया जाना नितांत आवश्यक है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि परमार्थ निकेतन और नटराज मन्दिर दोनों संस्थान मिलकर दक्षिण ओर उत्तर की संस्कृतियों का दिव्य संगम तैयार कर सकते हैं और यह वार्ता उत्तर और दक्षिण के मध्य सेतु का कार्य करेगी। उन्होेंने कहा कि हमारी संस्कृति और संस्कार भारत की आत्मा है। भारतीय संस्कृति, सनातन और वैदिक संस्कृति है, जो सार्वभौमिक है, सभी के लिये है तथा सब के हित के लिये है। हमारे वेद और उपनिषद् विश्व के प्राचीनतम ग्रंथों में से एक है। भारतीय संस्कृति अत्यंत उदात्त, समन्वयवादी, सशक्त एवं जीवंत हैं। ‘उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम’ के दिव्य सूत्र हमारे ऋषियों ने हमें दिये हैं। इस दिव्य संस्कृति को मिलकर सहेजें और हम सभी मिलकर युवाओं को अपनी संस्कृति से जोड़ें।
राजा दीक्षितार जी ने कहा कि परमार्थ निकेतन एक विश्व विख्यात आश्रम है जहां पर अध्यात्मिक गतिविधियों के साथ वसुधैव कुटुम्बकम् और विश्व बन्धुत्व का संदेश प्रसारित किया जाता है। परमार्थ निकेतन की गंगा आरती अत्यंत शान्ति प्रदान करने वाली है। यहां गंगा के तट पर आकर भण्डारा करके अपार शान्ति का अनुभव हुआ। हम बार-बार  यहां आते रहेंगे तथा दक्षिण भारत से अनेक भक्तों को यहां भेजते रहेंगे ताकि वे भी यहां की सुन्दरता, सुरम्यता, दिव्यता, भव्यता और आध्यात्मिकता का दर्शन कर सकें।

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