देहरादून। उत्तराखंड के नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि हाल ही में राज्य सरकार ने उत्तराखण्ड में ‘‘सेवा का अधिकार आयोग‘‘ में आयुक्त के रुप में एक नियुक्ति की है। नियुक्ति की प्रक्रिया और तरीके को देखकर यह लगता है कि सरकार की सारी शक्तियां नौकरशाहों ने अपने हाथों में ले ली है जो उनका प्रयोग सेवानिवृृत्त हो रहे नौकरशाहों के हितों को साधने के लिए करते हैं।
सेवा का अधिकार अधिनियम 2011 की धारा 13(1) और 2014 के संशोधित अधिनियम के अनुसार आयोग के मुख्य आयुक्त और आयुक्तों की नियुक्ति राज्य सरकार को नेता प्रतिपक्ष से सलाह लेकर करनी चाहिए।
उन्होंन कहा कि राज्य सरकार का अर्थ सामूहिक निर्णय लेते समय कैबिनेट से और महत्वपूर्ण मामलों में निर्णय लेते समय मुख्यमंत्री से होता है। उत्तराखण्ड सहित सभी राज्यों में संवैधानिक पदो और अधिनियमों में उल्लेखित नियुक्तियों को करने से पूर्व मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और अन्य सदस्यों जिनमें नियमानुसार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आदि होते हैं द्वारा बैठक कर व्यापक विचार-विमर्श के बाद ही नियुक्ति को अंतिम रुप दिया जाता है।
परंतु इस मामले में सचिव कार्मिक ने 27 जून 2022 को एक पत्र भेजकर यह उल्लेखित करते हुए सलाह मांगी कि आयुक्त पद पर भूपाल सिंह मनराल की चयन प्रक्रिया गतिमान है अतः परामर्श भेजें। पत्र के साथ न कोई पैनल भेजा , न ही नियुक्त होने वाले व्यक्ति का बायोडाटा, सेवारिकार्ड, गोपनीय जांच रिकार्ड या उसकी योग्यताऐं भेजी। बिना किसी रिकार्ड के कैसे कोई सलाह दे सकता है यह एक विचारणीय प्रश्न है। फिर सचिव किसी भी हाल में सरकार नहीं माना जा सकता है। बाद में समाचार पत्रों के माध्यम से ज्ञात हुआ कि बिना परामर्श लिए ही उक्त नियुक्ति कर दी गयी है।
नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि मैं किसी व्यक्ति की नियुक्ति का विरोध नहीं कर रहा हूं लेकिन लोकतंत्र में मान्य परम्पराओं से हटना उचित नहीं माना जा सकता है।
श्री आर्य ने कहा कि इससे स्पष्ट होता है कि नौकरशाही बेलगाम हो चुकी है और जो नौकरशाही के अधिकार क्षेत्र में नही भी है वो फैसले भी उनके द्वारा लिए जा रहें हैं जिसका यह नियुक्ति स्पष्ट उदाहरण है। उत्तराखण्ड में शासन ही अब सरकार है।
उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि राज्य सेवा के अधिकार आयोग राज्य के विभागों के विरुद्ध शिकायतें सुनता है। वर्तमान में मुख्य आयुक्त के रुप में एक पूर्व नौकरशाह और आयुक्त के रुप में पूर्व पुलिस अधिकारी नियुक्त हैं। यह आशा करना निरर्थक है कि जीवन भर सरकारी सेवा कर चुका व्यक्ति अपने ही पूर्व विभागों की अर्कमण्यता की शिकायतों को सुनकर सही निर्णय देगा। इसलिए मेरा मानना है कि ऐसे आयोग में अन्य सेवाओं जैसे न्यायिक सेवा, पत्रकारिता, समाजसेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सेवाओं से संबधित व्यक्ति भी आयुक्त के रुप में नियुक्त होने चाहिए थे।
श्री आर्य ने राज्य सरकार को सलाह दी कि, उसे यदि ऐसे निर्णय लेने हैं तो नेताप्रतिपक्ष को इन निर्णयों से दूर रखने के लिए कानून में संशोधन करना चाहिए। इन संशोधनों को करने के लिए उसके पास पूरा बहुमत है। लेकिन उनके सहित कोई भी लोकतांत्रिक व्यक्ति शासन को सरकार नहीं मानेगा। उन्होंने कहा कि उनका यह भी मानना है कि जनता द्वारा दी गई शक्तियों का प्रयोग भी मुख्यमंत्री, कैबिनेट और सरकार को ही करना चाहिए।