एवलांच से निकला तीन अरब लीटर पानी और हुई तबाही, इसरो की सेटेलाइट चित्रों से खुलासा

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देहरादून। ऋषिगंगा कैचमेंट क्षेत्र में जलप्रलय के पीछे की वजह एवलांच आना ही है। यह बात मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इसरो की देहरादून स्थित एजेंसी भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (आइआइआरएस) के सेटेलाइट चित्रों के आधार पर कही। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कहीं कोई ग्लेशियर नहीं फटा है।
आइआइआरएस की ओर से उपलब्ध कराए गए सेटेलाइट चित्रों के अनुसार तीन फरवरी को ऋषिगंगा के ऊपर स्थित पहाड़ी पर किसी तरह की बर्फ नहीं थी। फिर चार व पांच फरवरी को 5600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तीव्र ढाल वाले स्थलों पर भारी हिमपात के चलते अच्छी-खासी बर्फ जमा हो गई। बर्फ जमा होने की जानकारी छह फरवरी को लिए गए सेटेलाइट चित्रों के जरिये मिली। रविवार सुबह जब यह ताजा बर्फ एवलांच (स्नो एवलांच) के रूप में नीचे खिसकी तो अपने साथ बड़ी मात्रा में पहाड़ी पर जमा ग्लेशियर मलबे को भी उखाड़कर ले गई। बर्फ ताजा थी, लिहाजा जल्द ही पानी में तब्दील हो गई। गंभीर यह कि स्नो एवलांच जोन के रूप में बर्फ जमा होने का क्षेत्रफल करीब 14 वर्ग किलोमीटर है। यानी इस पूरे क्षेत्र में खतरा बरकरार है। यही वजह भी रही कि एवलांच की घटना के बाद ऋषिगंगा, धौलीगंगा, विष्णुगंगा व अलकनंदा नदी में भीषण बाढ़ के हालात पैदा हो गए थे।
एवलांच की घटनाओं के लिए ताजी बर्फ ही प्रमुख वजह होती है। यह बर्फ न सिर्फ जल्दी खिसकती है, बल्कि इससे बड़ी मात्रा में पानी का प्रवाह भी होता है। ऋषिगंगा कैचमेंट क्षेत्र में घटी एवलांच की घटना में दो से तीन मिलियन क्यूबिक मीटर (तीन अरब लीटर तक) पानी निकला। जब यह पानी नदी में मिला तो इसने विकराल रूप धारण कर लिया और बड़ी तबाही की वजह बन गया। यही कारण है कि ऋषिगंगा परियोजना पलभर में तबाह हो गई और निचले क्षेत्र में स्थित विष्णुगाड परियोजना के बैराज भी इससे ढह गए।

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