दीक्षांत इंटरनेशनल स्कूल में तिब्बती शरणार्थी व लेखक तेनजिंग सैंडू ने जम्मू कश्मीर की सीमा से जुड़े हुए तिब्बती देश के अनभिज्ञ विभिन्न पहलुओं से कराया अवगत

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हल्द्वानी। दीक्षांत इंटरनेशनल स्कूल में तेनजिंग सैंडू जो एक प्रसिद्ध कवि, लेखक, तिब्बती शरणार्थी और कार्यकर्ता हैं, के साथ बच्चों को आमना सामना होने का अवसर प्राप्त हुआ। तेनजिंग ने सभी को अपने जीवन की यात्रा वृतांत जो भारत में जम्मू कश्मीर की सीमा से जुड़े हुए तिब्बती देश के अनभिज्ञ विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया।
शिक्षा जगत में घुमक्कड़ी का महत्त्व बताते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी क्षेत्र में प्रत्यक्ष ज्ञान ही सर्वोत्तम होता है। अपनी इस यात्रा में आने वाले संघर्षों से मुलाकात करवाते हुए उन्होंने मार्ग में मिले महान व्यक्तियों, लद्दाख से लेकर तिब्बत तक के लोगों का जीवन यापन, खान-पान, वहां की विभिन्न फसलों आदि की भी जानकारी दी।
लद्दाख की प्रसिद्ध इमारतें जो कि सिर्फ मिट्टी, लकड़ी एवं पत्थर द्वारा निर्मित हैं, पांच हजार वर्ष पूर्व पत्थरों पर बनी कलाकृतियों के बारे में भी बताया। भारत और तिब्बत के रिश्ते को खट्टा मीठा कहा जाने का कारण कि पहले के समय में तिब्बत से नमक भारत व उत्तराखंड में आयात तथा भारत से गुड़ का वहां पर भारी मात्रा में निर्यात किया जाता था, की भी जानकारी बच्चों को प्राप्त हुई। तेनजिंग की इस यात्रा वृत्तान्त ने तो जैसे वहां पर उपस्थित जनमानस को साक्षात लद्दाख से तिब्बत के दर्शन ही करा दिए। विद्यार्थियों में उनके संघर्षों और प्रेरणा ने भाव-विभोर सा कर दिया।


विद्यालय के प्रबंधक समित टिक्कू ने राहुल सांकृत्यायन द्वारा प्रयोग की गई सुप्रसिद्ध पंक्तियां सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ?
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ? के द्वारा तेनजिंग का स्वागत व उनके द्वारा विद्यालय के लिए निकले गए बहुमूल्य समय हेतु धन्यवाद दिया और कहा कि 4500 किमी का सफर तेनजिंग ने सिर्फ 1 घंटा 30 मिनट में ही करा दिया।

प्रबंधक ने अपने वक्तव्यों में कहा कि श्रीमान तेनजिंग के साथ से हमारे बच्चों को भी यात्रा वृत्तान्त हेतु प्रेरणा मिली है, जिससे वे जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को भली प्रकार समझ पाएंगे।

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