अब आशा कार्यकर्ता बैठे आमरण अनशन पर, कहा बहुत हो गया शोषण अब नहीं करेंगे बर्दास्त

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हल्द्वानी। उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन ने आज से हल्द्वानी महिला अस्पताल पर अनिश्चितकालीन कार्यबहिष्कार शुरू कर दिया है। कहा है कि अब आशा शोषण नहीं होने देगे।आशाओं को मासिक वेतन और अन्य समस्याओं का समाधान करने के लिए चल रहा आंदोलन राज्य की भाजपा सरकार की उदासीनता और असंवेदनशील रवैये के चलते पूर्व घोषित अनिश्चितकालीन कार्यबहिष्कार के चरण में पहुंच गया है।
ऐक्टू से संबद्ध उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन के बैनर तले आशा वर्कर्स ने जोरदार प्रदर्शन कर धरना दिया और कार्यबहिष्कार हड़ताल शुरू कर दी। आशा नेताओं ने कहा कि लंबे समय से काम के बदले मानदेय फिक्स करने की लड़ाई लड़ रही आशाओं को आंगनबाड़ी की तरह मानदेय फिक्स किया जाय और अन्य मांगों पर ध्यान दिया जाय।
गौरतलब है कि 23 जुलाई 2021 को आशाओं ने राज्य भर में ब्लॉकों में प्रदर्शन मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा था लेकिन सरकार ने एक नहीं सुनी, 30 जुलाई को जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन किया गया तब भी सरकार के कानों में तेल डालकर बैठ गई है। इसलिए आशाओं को कार्यबहिष्कार करने पर मजबूर होना पड़ा। इससे पहले भी लगातार आशाएँ अपनी समस्याओं से भाजपा की राज्य सरकार को 2017 में सरकार बनने के बाद से ही अवगत करा रही हैं लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई। ‘ऐक्टू’ से संबद्ध ‘उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन’ के व ‘सीटू’ से संबद्ध ‘उत्तराखण्ड आशा स्वास्थ्य कार्यकत्री यूनियन’ के संयुक्त आह्वान पर 2 अगस्त से पूर्ण कार्यबहिष्कार कर पूरे राज्य में प्रदर्शन किया जा रहा है।
यूनियन के प्रदेश महामंत्री डॉ कैलाश पाण्डेय ने कहा कि, “सेवा के नाम पर आशाओं का शोषण कब तक चलेगा? उत्तराखण्ड में हक़, सुरक्षा और सम्मान की लड़ाई अब आरपार के चरण में पहुंच गई है। पूरे राज्य में अब एक साथ एक स्वर में आंदोलन चल रहा है। अपने वेतन और सम्मान के लिए आशा वर्कर तब तक सड़कों पर रहेंगी जब तक सरकार मासिक वेतन की घोषणा नहीं कर देती।” उन्होंने कहा कि, “पूरे उत्तराखण्ड में आशाओं ने ऐतिहासिक कार्यबहिष्कार करके दिखा दिया है कि अब सरकार द्वारा किया जा रहा शोषण खत्म करने के बाद ही लड़ाई रुकेगी।”
यूनियन की हल्द्वानी नगर अध्यक्ष रिंकी जोशी ने कहा कि, “प्राथमिक रूप से मातृ शिशु सुरक्षा के लिए तैनात की गई आशाओं को आज कोविड से लेकर पल्स पोलियो, टीकाकरण, परिवार नियोजन, डेंगू, मलेरिया, ओआरएस बांटने और तमाम सर्वे व अभियानों में लगाया जा रहा है। आशाओं के पास अपने परिवार तक के लिए फुर्सत नहीं है लेकिन सरकार एक रुपया भी मासिक वेतन के नाम पर नहीं दे रही है।” भगवती बिष्ट ने कहा कि, “अब आशाओं की सहनशीलता की और परीक्षा न ले सरकार। क्या किसी भी अन्य कर्मचारी से बिना मानदेय के काम ले सकती है सरकार? तब आशाओं से बिना वेतन या मानदेय के काम क्यों लिया जा रहा है, इस बात का जवाब दे सरकार।”
कार्यबहिष्कार धरने में रीना बाला, सरोज रावत, भगवती बिष्ट, रजनी देवी, मंजू आर्य, शांति शर्मा, बीना उपाध्याय, कमला बिष्ट, दीपा जोशी, भवानी सुयाल, सुनीता भट्ट, अंजना, भगवती पाण्डे, शाहीन अख्तर, बसंती बिष्ट, प्रियंका सक्सेना, दीपा बिष्ट, अर्शी, धना मेहता, मंजू रावत, पुष्पा आर्य, बबीता, माया टंडन, निर्मला चंद, किरन पलडिया, पुष्पा राजभर, मनीषा आर्य, अनिता सक्सेना, गीता, आशा, पुष्पा, प्रेमा, राबिया, सलमा, गंगा तिवारी, सरस्वती आर्य, लीला परिहार, चम्पा परिहार, आनंदी, शला खान, जानकी डसीला, तबस्सुम जहाँ, मीना, शाइस्ता, जाहिदा, हेमा दुर्गापाल, सुनीता मेहरा, बबिता आर्य, खष्टी जोशी, सुधा जायसवाल, बिमला तिवारी, लता तिवारी, पुष्पा देवी, शोभा, हंसी फुलारा, ममता लटवाल सहित सैकड़ों की संख्या में आशा वर्कर्स मौजूद रहीं।
उन्होंने कहा कि आशा वर्करों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा और न्यूनतम 21 हजार वेतन लागू किया जाय। जब तक मासिक वेतन और कर्मचारी का दर्जा नहीं मिलता तब तक आशाओं को भी आंगनबाड़ी जैसी अन्य स्कीम वर्कर्स की तरह मासिक मानदेय फिक्स किया जाय। सभी आशाओं को सेवानिवृत्त होने पर पेंशन का प्रावधान किया जाय और जिन आशाओं की पैदल ड्यूटी करते करते घुटनों में दिक्कतें आ गई हैं उनके लिए एक मुश्त पैकेज की घोषणा की जाय।
पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा घोषित कोरोना भत्ता तत्काल आशाओं के खाते में डाला जाय और कोविड कार्य में लगी सभी आशा वर्करों कोरोना ड्यूटी की शुरुआत से 10 हजार रूपए मासिक कोरोना-भत्ता भुगतान किया जाय। कोविड कार्य में लगी आशाओं वर्करों की 50 लाख का जीवन बीमा और 10 लाख का स्वास्थ्य बीमा लागू किया जाय। कोरोना ड्यूटी के क्रम में मृत आशा वर्करों के आश्रितों को 50 लाख का बीमा और 4 लाख का अनुग्रह अनुदान भुगतान किया जाय. उड़ीसा की तरह ऐसे मृत कर्मियों के आश्रित को विशेष मासिक भुगतान किया जाय।
सेवा(ड्यूटी) के समय दुर्घटना, हार्ट अटैक या बीमारी होने की स्थिति में आशाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए नियम बनाया जाय और न्यूनतम दस लाख रुपये मुआवजे का प्रावधान किया जाय।
देय मासिक राशि और सभी मदों का बकाया सहित समय से भुगतान किया जाय। आशाओं के विविध भुगतानों में निचले स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार व कमीशनखोरी पर लगाम लगायी जाय। सभी सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति तत्काल की जाय।आशाओं के साथ अस्पतालों में सम्मानजनक व्यवहार किया जाय। जब तक कोरोना ड्यूटी के लिए अलग से मासिक भत्ते का प्रावधान नहीं किया जाता तब तक आशाओं की कोरोना ड्यूटी न लगायी जाय।

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