आशि वर्कर्स ने उठाई कोरोना काल में साथियों के परिजनों को 50 लाख मुआवजे की मांग, एक सदस्य के दिए मांगी नौकरी

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हल्द्वानी। उत्तराखंड में आंदोलित आशा वर्कर्स ने कोरोना संक्रमण का शिकार होकर मृत हुई आशाओं के परिजनों को कोरोना फ्रंट वॉरियर को मिलने वाला पचास लाख का मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने देने की मांग उठाई है।साथ ही आशा वर्करों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा और न्यूनतम 21 हजार वेतन लागू करने की मांग भी उठाई है।
संगठन का कहना है कि जब तक मासिक वेतन और कर्मचारी का दर्जा नहीं मिलता तब तक आशाओं को भी अन्य स्कीम वर्कर्स की तरह मासिक मानदेय फिक्स किया करने, सभी आशाओं को सेवानिवृत्त होने पर पेंशन का प्रावधान करने, दुर्घटना और स्वास्थ्य बीमा करने, कोविड कार्य में लगी सभी आशा वर्करों कोरोना ड्यूटी की शुरुआत से 10 हजार रू० मासिक कोरोना-भत्ता भुगतान करने, अस्पतालों में आशाओं के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करने, आशाओं के सभी भुगतान समय से करने समेत बारह सूत्रीय मांगों और आशाओं की समस्याओं का समाधान करने की मांग उठाई है। इन मांगों के समर्थन में चल रही राज्यव्यापी बेमियादी हड़ताल के तहत आशा वर्कर्स ने ऐक्टू से संबद्ध उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन के बैनर तले सातवें दिन रविवार को भी धरना जारी रखा। उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन द्वारा जारी बयान में कहा गया कि, “कोरोना काल में बिना जरूरी सुरक्षा उपकरणों के भी स्वास्थ्य विभाग के कार्यों में जुटी आशाओं को सरकार तत्काल मासिक वेतन देने की घोषणा करे।कोरोना के समय जब सब लोग घरों में कैद थे आशाओं ने घर घर गाँव गाँव गली गली जाकर जागरूकता का काम किया, क्वारन्टीन सेंटर्स में ड्यूटी की। इसके एवज में सरकार को यह चाहिये था कि आशाओं को इसका श्रेय देते हुए मासिक वेतन दिया जाता लेकिन इसके बजाय सरकार की असंवेदनशीलता और उदासीनता के चलते आशाओं को हड़ताल पर विवश होना पड़ा है। यह हड़ताल सरकार की आशाओं के प्रति गलत नीतियों से उपजी है इसलिए सरकार को तत्काल आशाओं की माँगों को मानते हुए उनको मासिक वेतन और कर्मचारी का दर्जा देने की बात मान लेनी चाहिए।”
आशा नेताओं ने कहा कि, “कोरोना की तीसरी लहर की चर्चा के बीच सरकार को चाहिए कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करे और इस स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ आशाओं के श्रम का सम्मान करते हुए उनकी बात सुने। अगर इस बार भी सरकार ने आशा वर्कर्स की जायज मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो इसके खिलाफ पूरे राज्य की आशाएँ एक साथ आंदोलन में हैं और इस बार आरपार की लड़ाई लड़ी जायेगी। अपने हक और सम्मान की लड़ाई लड़ रही आशाएँ एकता और संघर्ष के बल पर अवश्य जीतेंगी। राज्य के मुख्यमंत्री तत्काल आशाओं की मासिक वेतन की मांग को पूरा करें अन्यथा हड़ताल जारी रहेगी।”
अनिश्चितकालीन हड़ताल के समर्थन में आज हुए धरना प्रदर्शन कार्यक्रम में डॉ कैलाश पाण्डेय, रीना बाला, अनुराधा, प्रेमा घुगत्याल, सरोज रावत, रेनू, गोविंदी लटवाल, मीना केसरवानी, लीला पठालनी, सुनीता मेहरा, मुन्नी रौतेला, पुष्पा आर्य, सरस्वती आर्य, मिथिलेश शर्मा, उमा दरमवाल, छाया, पूनम आर्य, नीमा आर्य, गीता देवी, मीनू, राधा, बीना कोरंगा, माया टंडन, किरन पलड़िया, कमलेश बोरा, कमला कंडारी, सुनीता भट्ट, मोहिनी, हेमा शर्मा, भारती थापा, रेखा पाठक, विमला चौधरी, बसंती बिष्ट, पुष्पलता, बिमला तिवारी, तुलसी, चम्पा, मीना मटियानी, आशा फर्त्याल, खीमा, प्रेमा रौतेला, प्रियंका शाही, सुधा जायसवाल, हंसी फुलारा, लीला परिहार, कमला, चम्पा मंडोला, ममता लटवाल, शकुंतला धपोला, वंदना तिवारी, ममता आर्य, हेमा सती, लता तिवारी, खष्टी जोशी, मुन्नी जोशी, पुष्पा पंवार, विमला पाण्डे, भगवती फर्त्याल, विमला नौगाई, तारा बिष्ट, रोशनी, पुष्पा तिवारी, बृजेश कटियार, रश्मि, हेमा कैड़ा, गीता बोरा, विमला शर्मा, सायमा सिद्दीकी, आशा जोशी, भावना सुयाल आदि समेत बड़ी संख्या में आशा वर्कर मौजूद रहीं। समर्थन में सामाजिक कार्यकर्ता इशरत अली भी पहुँचे।

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