दानव बन के बढ़ रहा , देखो तालीबान?

ख़बर शेयर करें -

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

सागर की कुण्डलियाँ……

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

( १ )

दानव बन के बढ़ रहा ,
देखो तालीबान ।
लाजहीन हो ले रहा ,
निर्दोषों की जान ।।
निर्दोषों की जान ,
लहू का मोल नहीं है ।
कौन माँ,भगिनी है ,
किसी की तोल नहीं है ।।
कह सागर कविराय ,
ऐक हों सारे मानव ।
होगी मनु की जीत,
तभी हारेगा दानव ।।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

( २ )

नेह सिखाती है सदा ,
भारत भू की रीत ।
मेलजोल अनमोल दें ,
जिसके पावन गीत ।।
जिसके पावन गीत ,
मनुजता को बोते हैं ।
रत्नाकर के ज्वार ,
मातु के पग धोते हैं ।
कह सागर कविराय ,
सभी को राह दिखाती ।
ऐसी पावन भूमि ,
सभी को नेह सिखाती ।।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

( ३ )

देखो जगने है लगा ,
हिमगिरि का पौरूष ।
सूरज भी होने लगा ,
देखो कुछ कंजूस ।।
देखो कुछ कंजूस ,
हास है खोने वाला ।
अब तो नग है बीज ,
शीत के बोने वाला ।।
कह सागर कविराय ,
लगा है सूरज थकने ।
भाल उठा गिरिराज ,
लगा है देखो जगने ।।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

( ४ )

अब शीतल होने लगी ,
नयन खोलती भोर ।
विहगों की तानें सखी ,
कौन ले गया चोर ।।
कौन ले गया चोर ,
कली अलसाई सी है ।
मेरे उर में अरे ,
सखी सुप्ति छाई सी है ।।
कह सागर कविराय ,
मंद है रवि का भी बल ।
तन को छूती सखी ,
पवन अब लगती शीतल ।।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

©️डा० विद्यासागर कापड़ी

सर्वाधिकार सुरक्षित

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

🙏मित्रों को मेरा नमस्कार🙏

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

Ad