अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) की मनमानी छपाई पर शासन का नियंत्रण हो!

ख़बर शेयर करें -

हरीशंकर सिंह

देहरादून- अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत, 1974 से कार्यरत देशव्यापी संगठन है, जो उपभोक्ताओं को ग्राहक जागरूकता, अधिकारों की शिक्षा एवं ग्राहकों की शिकायतों के लिए मार्गदर्शन करने वाला एक स्वयंसेवी संगठन है। गंभीर विचार विमर्श के बाद अब हम पैकेज्ड वस्तुओं पर एमआरपी की छपाई तय करने के लिए कानून और नियामक आदेश लाने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव डालने के लिए एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने की योजना बना रहे हैं। ए.बी.जी.पी. उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन में शामिल अग्रणी संगठन है।

सरकार ने 1990 में लीगल मेट्रोलॉजी विधान के तहत अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) पेश किया। खुदरा बिक्री के लिए रखे जाने वाले उत्पाद की पैकेजिंग पर एम.आर.पी. की छपाई अनिवार्य कर दी गई। खुदरा विक्रेता निश्चित रूप से एमआरपी से कम पर उत्पाद बेच सकता है। लेकिन एमआरपी से अधिक कीमत पर उत्पाद बेचना अपराध है। विडंबना यह है कि एम.आर.पी. कैसे तय की जानी चाहिए, इस बारे में किसी भी दिशानिर्देश पर कानून चुप है।

आज निर्माता मनमाने ढंग से एमआरपी तय करते हैं। एम आर पी अपारदर्शी है और उपभोक्ता को एमआरपी की संरचना के बारे में कोई जानकारी नहीं है। हमें ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जहां उपभोक्ता ऐसी कीमत चुकाता है जिसका उत्पाद की योग्यता से कोई संबंध नहीं होता। उपभोक्ता प्रतिनिधि के रूप में हम मांग करते हैं कि एमआरपी संरचना निष्पक्ष, पारदर्शी और आसानी से समझी जाने वाली होनी चाहिए। चूँकि किसी उत्पाद की एम.आर.पी. तय करने में सरकार की कोई भूमिका नहीं होती, इसलिए एमआरपी अनुचित राशि पर निर्धारित की जाती है।

खासकर दवाइयों के मामले में उपभोक्ताओं को जबरदस्त लूटा जाता है। उपभोक्ता न तो चुनने के अपने अधिकार का प्रयोग कर सकता है और न ही लूट के बारे में जागरूक हो सकता है।

ए. बी.जी.पी. पूरे देश में एमआरपी का मुद्दा क्यों उठा रहा है?

लगभग 140 करोड़ उपभोक्ताओं की ओर से, ए.बी.जी.पी. ने केंद्र सरकार से उत्पाद की लागत (सीओपी), उत्पाद की पहली बिक्री मूल्य (एफएसपी) और एमआरपी के संबंध में एमआरपी को कॉन्फ़िगर करके सभी उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाने वाला कदम उठाने का अनुरोध किया है।

एम.आर.पी. की संरचना तैयार करने और उस पर अमल करने में समय लग सकता है। इस बीच सरकार पैक्ड उत्पादों पर एम.आर.पी के साथ एफ.एस.पी.(First Salae Price) भी छापने का आदेश दे सकती है। उपभोक्ता जब खरीदारी करता है तो वह तर्कसंगत विकल्प चुन सकता है यदि उसे एफ. एस. पी. के बारे में जानकारी हो। एफ. एस. पी को लागू करने से निर्माताओं और आयातकों पर अत्यधिक लागत नहीं आती है एवं उपभोक्ताओं को वास्तविक लाभ होगा । यह उपभोक्ता की पसंद के अधिकार का समर्थन करेगा।

ए.बी.जी.पी. ने इस मुद्दे को उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय, वित्त मंत्रालय के साथ उठाया है और देश के नागरिकों के बीच इस विषय को फैलाने के लिए देश के प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों का सहयोग भी मांगा है। एबीजीपी ने इस मुद्दे का अध्ययन करने और संसद के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए एक मसौदा विधेयक तैयार करने के लिए संसद सदस्यों को भी एक पत्र लिखा है।

Ad