कॉंग्रेस प्रत्याशी निर्मला गहतोड़ी भले ही हार गयी हो किन्तु यह निर्विवाद है कि वह पूरे दमखम से लड़ी

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वीरेंद्र पेटवाल

देहरादून , चंपावत उपचुनाव में मुख्यमंत्री धामी जी की जीत को कोई ऐतिहासिक तो कोई प्रचण्ड मतों से विजयी करार दे रहा है. इस एकतरफा मुकाबले में यह तो होना ही था.सत्ता में पहले से ही काबिज बीजेपी सरकार मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाये हुए थी. फिर भी उसने इसे गम्भीरता से लिया जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का धामी के प्रचार में शिरकत करना था दूसरी ओर लस्त पस्त कांग्रेस के प्रान्तीय नेतृत्व ने इसे कतई गम्भीरता से नहीं लिया.

बीते विधानसभा चुनावों के समय पार्टी टिकट के लिये मरे जा रहे किसी सुरमा ने इस उपचुनाव में टिकट के लिये दावा नहीं ठोका. क्यों ?हारने के जोखिम का भय सता रहा था. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस में लड़ने का माद्दा ख़त्म होने लगा है. कॉंग्रेस प्रत्याशी निर्मला गहतोड़ी भले ही हार गयी हो किन्तु यह निर्विवाद है कि वह पूरे दमखम से लड़ी. उन्हें मिले वोट इसकी तस्दीक करते हैं कि पार्टी ने उन्हें महज टिकट थमाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली. जो वोट उन्हें मिले वह उनके व्यक्तिगत प्रभाव का नतीजा हैं. उनकी सँख्या कितनी है यह सवाल गौण है. हाँ जनादेश का निहितार्थ यह है कि कांग्रेस का जनाधार बुरी तरह छीजता जा रहा है. उसे बचाने की अव्वल तो कोई कोशिश करता हुआ आलाकमान नहीं दिखाई देता और जो कुछ दिख रहा है वह महज पैबन्द लगानी का फौरी इन्तजाम है ,

वीरेंद्र पटवाल   एसजीआरआर इंटर कॉलेज माेथराेवाला देहरादून

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है और यह विचार लेखक के निजी विचार है)

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