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सागर के दोहे………..
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( १ )
बनवारी की चाहना ,
मिली मनुज की देह ।
मनुवा उसके नाम से ,
लगा तनिक तू नेह ।।
( २ )
मन उसका तू नाम ले ,
जिसने दिया शरीर ।
भवसागर से पार तो ,
करते हैं रघुवीर ।।
( ३ )
मनुवा तेरा थाम ले ,
मुरली वाला हाथ ।
जग की चिंता क्यूँ करें ,
चाहे छोड़े साथ ।।
( ४ )
वो रज है बड़भागिनी ,
जिस पर पद की छाप ।
बनवारी के नेह से ,
मिट जाते संताप ।।
( ५ )
मोहन तेरी बाँसुरी ,
कैसी है बड़भाग ।
कर,अधरों के योग से ,
छेड़े मधुरिम राग ।।
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©️डा० विद्यासागर कापड़ी
सर्वाधिकार सुरक्षित
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