एक दुर्लभ मामले में इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स में 5 महीने के सबसे उम्र के बच्चे में किया गया सफल हार्ट ट्रांसप्लान्ट
देहरादून। इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स में 5 महीने के सबसे उम्र के बच्चे में सफल हार्ट ट्रांसप्लान्ट किया गया। जन्म के समय बच्चे के हार्ट फंक्शन्स ठीक से काम नहीं कर रहे थे। दिल के बाएं चैम्बर की मसल्स में कई छेद होने के कारण बच्चे में डायलेटेड कार्डियो मायोपैथी का निदान किया गया था, इसकी वजह से जो खून दिल में जाना चाहिए वह दिल से बाहर जा रहा था और दिल अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहा था।
बच्चे को एमरजेन्सी में अस्पताल लाया गया, जबकि उसका पल्स और बीपी रूक गए थे। 4 घण्टे तक एमरजेन्सी में देखभाल के बाद उसे एनआईसीयू में रखकर स्टेबल किया गया। बच्चे को हार्ट ट्रांसप्लान्ट की ज़रूरत थी, भर्ती के दिन ही उसे छव्ज्ज्व् के साथ पंजीकृत कर दिया गया था। बच्चे की किस्मत अच्छी थी कि उसे 20 माह के मृतक डोनर का हार्ट मिल गया।
डॉ भाबा नंद दास, सीनियर कन्सलटेन्ट, कार्डियो थोरेसिक सर्जरी, इन्द्रप्रस्थ अपोलो होस्पिटल्स ने कहा, ‘‘अंतिम अवस्था के हार्ट फेलियर के मामले में एक व्यक्ति को हार्ट ट्रांसप्लान्ट की ज़रूरत होती है, जब अन्य सभी उपचार या बाहरी सपोर्ट हार्ट फंक्शन को सामान्य बनाने में कारगर न रहें। आमतौर पर हार्ट ट्रांसप्लान्ट सहित सभी ट्रांसप्लान्ट मैचिंग ब्लड ग्रुप डोनर के साथ ही किए जाते हैं। किंतु बच्चों के मामले में अंग मिलना बहुत मुश्किल होता है और इस पर मैचिंग ब्लड ग्रुप डोनर मिलना तो बहुत ही कम मामलों में देखा जाता है। इसलिए बच्चों के मामले में हम मिसमैच ब्लड ग्रुप ट्रांसप्लान्ट को स्वीकार करते हैं। ‘इस बच्चे का ब्लड ग्रुप ओ प्लस था जबकि डोनर का ब्लड ग्रुप एबी प्लस था। ज़्यादातर मामलों में कोई गंभीरता नहीं होती, किंतु अगर ऐसी स्थिति हो भी तो हमारे पास प्लाज़्मा एक्सचेंज जैसे विकल्प होते हैं।’’
डॉ मुकेश गोयल, सीनियर कन्सलटेन्ट, कार्डियो थोरेसिक सर्जरी, इन्द्रप्रस्थ अपोलो होस्पिटल्स ने कहा, ‘‘डोनर से प्राप्त सभी अंगों को एक निर्धारित समय के अंदर ही मरीज़ में ट्रांसप्लान्ट करना होता है, हार्ट के मामले में यह समय 4 घण्टे होता है। क्योंकि शरीर से बाहर आनेके बाद अंग को ऑक्सीजन, खून एवं पोषक पदार्थों की आपूर्ति रूक जाती है, ऐसे में अंग मरने लगता है। अगर चार घण्टे के अंदर हार्ट को ट्रांसप्लान्ट न किया जाए तो इस बात की संभावना होती है कि हार्ट ठीक से काम नहीं करेगा। इसके बाद मरीज़ की स्थिति के आधार पर उसे अस्थायी रूप से म्ब्डव् सपोर्ट की ज़रूरत होती हे, जब तक अंग ठीक से काम न करने लगे।’’
डॉ मुथु जोथी, सीनियर कन्सलटेन्ट, पीडिएट्रिक कार्डियोथोरेसिक सर्जरी, इंटरवेंशनल कार्डियोलोजी, इन्द्रप्रस्थ अपोलो होस्पिटल्स ने कहा, ‘‘जब बच्चे को भर्ती किया गया, उसका हार्ट वेंटीलेटर सपोर्ट के बिना ठीक से काम नहीं कर रहा था। हम जानते थे कि सिर्फ हार्ट ट्रांसप्लान्ट से ही बच्चे को बचाया जा सकता है, किंतु इतने छोटे बच्चे के लिए हार्ट मिलना बहुत ही मुश्किल और दुर्लभ था। फिर भी हमने पहले ही दिन छव्ज्ज्व् के साथ उसका पंजीकरण करवा दिया और 8 जनवरी को 20 माह के एक ब्रेन डैड बच्चे का हार्ट, किडनी और लिवर डोनेट किए गए। एक विशेष ग्रीन कोरिडोर बनाया गया, जिसके माध्यम से 17 मिनट के अंदर अंग को अस्पताल में लाया गया और ठीक 2 घण्टे 5 मिनट के अंदर सफलतापूर्वक हार्ट ट्रांसप्लान्ट कर दिया गया।’’
डॉ भाबा नंद दास, सीनियर कन्सलटेन्ट, कार्डियो थोरेसिक सर्जरी (सर्जिकल) के नेतृत्व मंे उनकी विशेषज्ञ टीम- डॉ राजेश शर्मा, सीनियर कन्सलटन्ट, पीडिएट्रिक कार्डियोलोजी (सर्जिकल), कार्डियो थोरेसिक सर्जरी, डॉ मुकेश गोयल, सीनियर कन्सलटेन्ट, कार्डियो थोरेसिक सर्जरी, डॉ दीपा सरकार और डॉ विकास एनेस्थेसियोलोजिस्ट, डॉ मनीषा चक्रवर्ती, कार्डियोलोजिस्ट, डॉ मुथु जोथी, सीनियर कन्सलटेन्ट, पीडिएट्रिक कार्डियोलोजी, डॉ रीतेश गुप्ता, पीडिएट्रिक कार्डियक इन्टेन्सिविस्ट- ने इस ट्रांसप्लान्ट को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।
अब बच्चे पर निगरानी रखी जा रही है और 2 दिन के अंदर उसे वंेटीलेटर से हटा दिया जाएगा, जिसके बाद एंटी-रिजेक्शन थेरेपी दी जाएगी ताकि हार्ट सामान्य रूप से काम करने लगे।