हल्द्वानी। दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध मैदान में शहीद हुए लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला का शव 38 साल बाद सियाचिन के ग्लेशियर से बरामद किया गया। ये खबर घर तक पहुंची तो पत्नी और बेटी का मस्तिष्क कुछ पल के लिए शून्य हो गया। माना जा रहा है कि मंगलवार को शहीद का शव उनके आवास हल्द्वानी पहुंचेगा।
लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला मूलरूप से जनपद अल्मोड़ा के रानीखेत तहसील के बिन्ता ग्राम हाथीखर निवासी स्व. देवी दत और बिशना देवी के पुत्र थे। 15 दिसम्बर 1971 को कुमांऊ रेजिमेंट केन्द्र रानीखेत से भर्ती हुए। 1975 में उनकी शादी हवालबाग निवासी शान्ति देवी से हुई। इनकी दो बेटियां कविता और बबिता हैं। शांति देवी वर्तमान में अपनी बड़ी बेटी कविता के साथ हल्द्वानी के सरस्वती विहार धानमिल में रहती हैं।
अप्रैल 1984 में दुनियां के सबसे ऊंचे युद्ध के मैदान का आगाज ऑपरेशन मेघदूत के साथ शुरु हुआ। 19 कुमांऊ को खेरु से पैदल सियाचिन कूच कराया गया और मकसद था बर्फ से ढकी चोटियों पर कब्जा कर पाकिस्तान को रोकना। सबसे कठिन चोटी पर कब्जा करने के लिए 19 कुमाऊं ने एक अधिकारी और 17 जवानों का दल गठित किया। इस दल में लांस नायक चंद्रशेखर हर्बोला भी शामिल थे। दल का नेतृत्व लेफ्टिनेंट पीएस पुंडीर कर रहे थे। 27 अप्रैल 1984 को दल रवाना हुआ और 28-29 को हुए हिमस्खलन में पूरा गश्ती दल फंस गया। सभी 17 जवान शहीद हो गए। बीते शनिवार को सेना ने सियाचिन से 38 साल बाद लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला का शव बरामद किया। इसकी जानकारी रानीखेत स्थित 19 कुमाऊं रेजीमेंट के अधिकारियों ने शांति देवी को दी। जिसके बाद स्थानीय प्रशासन के अधिकारी भी शहीद लांसनायक की धर्मपत्नी से मिलने उनके धानमिल स्थित घर पहुंच गए। (सौजन्य से अमृत विचार)