नैनीताल। उत्तराखंड विधानसभा में पूर्व में विधानसभा अध्यक्षों द्वारा नियुक्त कर्मचारियों को सेवा से निकाले जाने का सरकार के निर्णय पर हाईकोर्ट की रोक लगा दी है। फिलहाल उनकी नौकरी बनी रहेंगी।
विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों की बर्खास्तगी आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर शुक्रवार को हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ में सुनवाई हुई थी। मामले में दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं ने पक्ष रखा। इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई शनिवार को भी जारी रखने का निर्णय लिया गया था।
कोर्ट में विधानसभा सचिवालय का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता विजय भट्ट ने कहा था कि हटाए गए लोगों की नियुक्ति बैकडोर से हुई। इस दौरान मानकों का पालन नहीं किया गया। साथ ही इन्हें कामचलाऊ व्यवस्था के आधार पर रखा गया था। इसी व्यवस्था के आधार पर इन्हें नियमानुसार हटा दिया गया।
वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता देवीदत्त कामत, अवतार सिंह रावत और रविन्द्र बिष्ट ने कहा था कि स्पीकर ने लोकहित में कर्मियों की सेवा खत्म कर दी। उन्हें किस आधार पर व किस कारण हटाया गया,बर्खास्तगी के आदेश में इसका उल्लेख नहीं किया गया। हटाने से पूर्व उनका पक्ष भी नहीं सुना गया। हटाए गए कर्मी सचिवालय में नियमित कर्मियों की ही भांति कार्य कर रहे थे। एक साथ इतने कर्मियों को बर्खास्त करना लोकहित नहीं है। मामले के अनुसार बबिता भंडारी, भूपेंद्र सिंह और कुलदीप सिंह सहित 55 लोगों ने अपनी बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया है कि उन्हें बिना कारण बताए हटाया गया है। जबकि विस सचिवालय में 2002 से 2015 के बीच 396 पदों पर भी बैकडोर नियुक्तियां हुई हैं, जिन्हें नियमित किया जा चुका है।