आम आदमी पार्टी में उनकी एंट्री को लेकर अनेक सवाल मुँह बाये खड़े हैं. मसलन कांग्रेस और बीजेपी से इतर आम आदमी पार्टी तीसरे विकल्प की भरपाई कर पायेगी ?क्या पार्टी अजय कोठियाल की लोकप्रियता को वोट बैंक में तब्दील कर पायेगी ?सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल क्या पार्टी उन्हें बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करेगी ?यदि पार्टी सत्ता में आती है तो वह जनाकांक्षाओं पर खरी उतर पायेगी ?
वीरेंद्र पेटवाल
कर्नल (सेवानि वृत )अजय कोठियाल ने अंततः आम आदमी पार्टी का दामन थामकर राजनीतिक अटकलों पर विराम लगा दिया l आम आदमी पार्टी में उनकी एंट्री को लेकर अनेक सवाल मुँह बाये खड़े हैं. मसलन कांग्रेस और बीजेपी से इतर आम आदमी पार्टी तीसरे विकल्प की भरपाई कर पायेगी ?क्या पार्टी अजय कोठियाल की लोकप्रियता को वोट बैंक में तब्दील कर पायेगी ?सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल क्या पार्टी उन्हें बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करेगी ?यदि पार्टी सत्ता में आती है तो वह जनाकांक्षाओं पर खरी उतर पायेगी ?
सर्वविदित है कि उत्तराखण्ड में कांग्रेस और बीजेपी जैसे राष्ट्रीय दल क्रमशः सत्ता के केंद्र रहे हैं. दोनों ही दल उस अवधारणा को अमली जामा पहनाने में विफल रहे जिस पर इस राज्य का गठन हुआ था. इसका सबसे बड़ा उदाहरण गैरसैण है. जिसको लेकर दोनों दलों ने जनता के साथ छलावा किया है.
अपने जनविरोधी फैसलों के चलते एन डी तिवारी को छोड़कर किसी भी मुख्यमंत्री का अपने कार्यकाल को पूरा न कर पाना एक अन्य प्रमाण है. ऐसे में जनता को हमेशा विकल्प की तलाश रही. निष्पक्ष विश्लेषण किया जाये तो उक्रांद इसकी नैसर्गिक हकदार थी किन्तु अपने उद्देश्य से भटककर सत्ता की गोद में बैठने की उसने जो भूल की उसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ रहा है. राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि अजय कोठियाल ऐसे में जनता को उम्मीद की किरण दिखते हैं.
लोगों का मानना है कि राष्ट्रीय दलों को उन्होंने बीस साल तक मौका दिया लेकिन उन्होंने अपने एजेंडे को प्राथमिकता दी और क्षेत्रीय हितों को दरकिनार किया. उन्होंने उत्तराखण्ड को मात्र ऐशगाह से ज्यादा कुछ नहीं समझा. मतदाताओं का यह भी मानना है कि कोठियाल विजन रखने के साथ एक्शन मोड़ में रहने वाले बेदाग छवि रखते हैं.
केदारनाथ आपदा के बाद पुनर्निर्माण में उनकी उल्लेखनीय भूमिका इसका जीवंत प्रमाण है. दूसरा यक्ष प्रश्न अपने मतदाता को बूथ तक लाने का है जो आसान काम नहीं है. यद्यपि आम आदमी पार्टी जनहित के मुद्दों को लेकर काफी मुखर रही है.
ऐसे में लोगों का जुड़ना लाजिमी है लेकिन चुनाव बूथ तक उसकी सक्रियता को बनाये रखना बड़ी चुनौती है. ये पार्टी संगठन के कौशल और आम आदमी से संवाद पर निर्भर है. सबसे अहम् सवाल पार्टी के चेहरे को लेकर है.
भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार कर्नल और केजरीवाल के बीच कई दौर की बातचीत के बाद कोठियाल को ही बतौर सी एम प्रोजेक्ट कर चुनाव लड़ने का फैसला हुआ है. पर ये सब सांगठनिक कौशल और एकजुटता से संभव है क्यों कि इसी पर संभावनाओं को पंख लगेंगे. ऐसा न हो कि संभावनाओं को पंख लगे और अतिमहत्वाकांक्षाए हिलोरे मारने लगे. जहाँ तक जनाकांक्षाओं पर खरा उतरने का सवाल है अतीत से सबक लेने की ज़रूरत है. यदि आम आदमी पार्टी को कर्नल कोठियाल की बदौलत उत्तराखण्ड की राजनीति में इतिहास रचने का मौका मिला और उन्हें फ्री हैंड दिया गया तो अजय अजेय और अश्वमेध साबित होंगे. ये लेखक के निजी विचार है
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं श्री गुरु राम राय इंटर कॉलेज मथोरोवाला देहारादून मे प्रधानाचार्य है)