हरिद्वार गंगा में बिना मेडल प्रवाहित किए वापस लौट गए पहलवान, किसान नेता नरेश टिकैत ने समझा कर वापस भेजा

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हरिद्वार। महिला खिलाड़ियों के उत्पीड़न के विरोध में आज विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया गंगा में मेडल प्रवाहित करने हरिद्वार पहुंचे। भारतीय किसान यूनियन टिकैत के राष्ट्रीय प्रवक्ता नरेश टिकैत पहलवानों से मिलने मौके पर पहुंचे। उन्होंने काफी देर तक पहलवानों को समझाया। उन्होंने पहलवानों को आश्वासन दिया कि वह पहलवानों को इंसाफ दिलाने के लिए वार्ता करेंगे। नरेश टिकैत की बात मानने के बाद पहलवान करीब पौने दो घंटे के बाद वापस दिल्ली लौट गए।
बता दें कि मंगलवार को बजरंग पुनिया ने मेडल गंगा में प्रवाहित करने की जानकारी अपने ट्वीटर एकाउंट पर दी थी। उन्होंने लिखा ’28 मई को जो हुआ वह आप सबने देखा। पुलिस ने हम लोगों के साथ क्या व्यवहार किया। हमें कितनी बर्बरता से गिरफ़्तार किया। हम शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे। हमारे आंदोलन की जगह को भी पुलिस ने तहस नहस कर हमसे छीन लिया और अगले दिन गंभीर मामलों में हमारे ऊपर ही एफआईआर दर्ज कर दी गई। क्या महिला पहलवानों ने अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के लिए न्याय मांगकर कोई अपराध कर दिया है। पुलिस और तंत्र हमारे साथ अपराधियों जैसा व्यवहार कर रही है, जबकि उत्पीड़क खुली सभाओं में हमारे ऊपर फबतियां कस रहे हैं। टीवी पर महिला पहलवानों को असहज कर देनी वाली अपनी घटनाओं को कबूल करके उनको ठहाकों में तब्दील कर दे रहा है। यहां तक कि पाक्सो एक्ट को बदलवाने की बात सरेआम कह रहा है। महिला पहलवान अंदर से ऐसा महसूस कर रही हैं कि इस देश में हमारा कुछ बचा नहीं है। हमें वे पल याद आ रहे हैं जब हमने ओलंपिक, वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेडल जीते थे।


अब लग रहा है कि क्यों जीते थे। क्या इसलिए जीते थे कि तंत्र हमारे साथ ऐसा घटिया व्यवहार करे। हमें घसीटे और फिर हमें ही अपराधी बना दे। कल पूरा दिन हमारी कई महिला पहलवान खेतों में छिपती फिरी हैं। तंत्र को पकड़ना उत्पीड़क को चाहिए था, लेकिन वह पीड़ित महिलाओं को उनका धरना खत्म करवाने, उन्हें तोड़ने और डराने में लगा हुआ है। अब लग रहा है कि हमारे गले में सजे इन मेडलों का कोई मतलब नहीं रह गया है। इनको लौटाने की सोचने भर से हमें मौत लग रही थी, लेकिन अपने आत्म सम्मान के साथ समझौता करके भी क्या जीना.।
लिखा कि मन में यह सवाल आया कि किसे लौटाएं ये मेडल। हमारी राष्ट्रपति को, जो खुद एक महिला हैं। मन ने ना कहा, क्योंकि वह हमसे सिर्फ दो किलोमीटर दूर बैठीं सिर्फ देखती रहीं, लेकिन कुछ भी बोली नहीं। हमारे प्रधानमंत्री को, जो हमें अपने घर की बेटियां बताते थे। मन नहीं माना, क्योंकि उन्होंने एक बार भी अपने घर की बेटियों की सुध नहीं ली, बल्कि नई संसद के उद्घाटन में हमारे उत्पीड़क को बुलाया। वह तेज सफेदी वाले चमकदार कपड़ों में फोटो खिंचवा रहा था. उसकी सफेदी हमें चुभ रही थी, मानो कह रही हो कि मैं ही तंत्र हूं।
इस चमकदार तंत्र में हमारी जगह कहां हैं। भारत में बेटियों की जगह कहां हैं। क्या हम केवल नारे बनकर या सत्ता में आने भर का एजेंडा बनकर रह गई हैं। ये मेडल अब हमें नहीं चाहिए क्योंकि इन्हें पहनाकर हमें मुखौटा बनाकर केवल अपना प्रचार करता है यह तेज सफेदी वाला तंत्र और फिर हमारा शोषण करता है। हम उस शोषण के खिलाफ बोलें तो हमें जेल में डालने की तैयारी कर लेता है।

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