गोपेश्वर। चमोली एसटीपी परिसर में करंट दौड़ने के बाद 16 लोगों की मौत का गुनहगार कौन है? लोग इसका जवाब चाहते हैं। लेकिन अब तक इसका स्पष्ट जवाब किसी के पास नहीं है। एसटीपी से जुड़े महकमे एक दूसरे को दोषी ठहराने की कोशिश कर रहे हैं या फिर चुप्पी साध गए हैं। कोई अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है। यूपीसीएल जहां जल संस्थान पर हादसे का ठीकरा फोड़ रहा है, वहीं जल संस्थान के अफसर खुल कर कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं।
इस पूरे हादसे में यूपीसीएल और जल संस्थान एक दूसरे के पाले में गेंद डाल रहे हैं। असल कारणों से पल्ला झाड़ने की कोशिशें हो रही हैं। तकनीकी जानकार मान रहे हैं कि जब सुबह जेई और अन्य लोग एसटीपी परिसर में पहुंचे, तो मौके पर पैनल जला हुआ था। पंप हाउस का कनेक्शन बंद किया गया। हालांकि सूत्र बता रहे हैं कि सिर्फ एलटी पैनल ही नहीं जला, बल्कि सर्वो स्टेबलाइजर भी जल कर खाक हो गया। बिजली का मीटर और पोल से मीटर तक पहुंचने वाली केबिल पूरी तरह सुरक्षित है। इतना देखते ही जल संस्थान के इंजीनियरों को समझ जाना चाहिए था कि ये कोई शार्ट सर्किट का सामान्य मामला नहीं है। तत्काल इस घटनाक्रम की यूपीसीएल को जानकारी देनी चाहिए थी। यूपीसीएल के इंजीनियर कह रहे हैं कि उन्हें रात में करंट लगने वाले हादसे की जानकारी ही नहीं दी गई। हालांकि जल संस्थान के इंजीनियरों का कहना है कि एक कर्मचारी की मौत की सूचना दे दी गई थी। इसके बाद भी लाइन चालू करने के दौरान यूपीसीएल और जल संस्थान के इंजीनियरों के बीच कोई समन्वय ही नहीं रहा। जिससे फॉल्ट दूर करने के बाद लाइन चालू कर दी गई और पूरे परिसर में करंट फैल गया।
सीजीएम नीलिमा गर्ग ने बताया कि हादसे का क्या कारण है, ये जांच के बाद ही मालूम चलेगा। हालांकि ईई संजय श्रीवास्तव ने कहा कि यदि 440 वोल्ट का करंट होता, तो इतना बड़ा हादसा नहीं होता। कहीं न कहीं 11 हजार केवी की लाइन से ही कहीं करंट फैला है। जांच में साफ हो जाएगा।
यूपीसीएल एमडी अनिल कुमार ने बताया कि प्रथम दृष्टया ये पूरा मामला एसटीपी परिसर के अंदरुनी फॉल्ट का प्रतीत हो रहा है। परिसर में लगे मीटर और केबिल में कोई फॉल्ट नहीं है। न ही इन दोनों में आग लगी है। यदि हाईवोल्टेज का विषय होता, तो पहले केबिल और मीटर में ही आग लगती। फॉल्ट मीटर से आगे केबिल और अंदर परिसर में ही रहा।