त्याग और बलिदान की मूर्ति माँ,

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त्याग और बलिदान की मूर्ति माँ,
पशु,पक्षियों, मानव सभी को प्यारी होती है।
अपने बच्चों की खुशीकी खातिर
न जाने कब जागती और कब ये माँ सोती है।
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अपनी माँ की विशेषताऐँ बता दूँ
वृध्द हो चुकी परन्तु आजभी बहुत कर्मठ है ।
आराम से ऊठ जाया करो मेरीमाँ
परन्तु प्रातः चार बजे ऊठ जाना उनकी हट है।
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मै अपनी माँ से नित ही कहता हूँ
“माँ तुम्हारा ये बेटा कालेज का प्रधानाचार्य है।
दुनिया क्या कहती होगी मेरे बारे
तुम्हारे पास करने को जब इतना सारा कार्यहै।
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बैठ चैन से रोटी खा लिया करमाँ
किस लिए पाल रखी ये बछिया और गाय है!
इनके कारण ही चलती फिरतीहूँ
सक्रिय रहने का मेरे पास यही तो उपाय है।
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जबतक यह नश्वर शरीर साथ दे
तबतक कुछ करते रहना ही सच ही है हितकर
जितना कर सकती हूं करनेदेबेटा
अच्छा नहीं लगता तेराकहना मतकर मतकर
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औपचारिक शिक्षा से वँचित माँ
व्यवहारिकज्ञान मे बहुतअधिक असाधारण है।
कभी सुखचैन से नहीं बैठेगी माँ
मेरा अदृश्य परेशानी का यहभी एक कारण है।
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मात पिता, पत्नी और बच्चों को
सुख सुविधाएं देना ही रही मेरी प्राथमिकता
इसीचिँतन मे उलझी रहीजिन्दगी
खरीदलिया होता यदि यहां कहीं शुकूनबिकता
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आजकल माँ के पास गांव मे हूँ
क्षण प्रतिक्षण होता रहता है मुझे ये अहसास
जिसकीमाँ सुखी सचमेवहीसुखी
माँ से ज्यादा इस दुनिया में कुछ नहीं हैखास

👌👌 माँ को समर्पित👌👌

रविंद्र सैनी

प्रधानाचार्य
एस.जी.आर.आर.इण्टर कालेज, सहसपुर, देहरादून।

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