हल्द्वानी। उत्तराखंड के नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि उत्तराखंड की भाजपा सरकार के अजीबोगरीब निर्णयों से आने वाले वर्ष में राज्य में शराब सस्ती हो रही है और आम आदमी की प्राथमिक जरूरत बिजली-पानी-पढ़ाई महंगी होती जा रही है।
उन्होंने कहा कि आज फिर राज्य विद्युत नियामक आयोग ने उत्तराखंड उर्जा निगम के बिजली की दरों में 5.62 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी के प्रस्ताव को स्वीकृत कर आम उपभोक्ताओं को महंगाई का करंट दिया है ,इससे प्रदेश के 27 लाख उपभोक्ता प्रभावित होंगे। एक तरफ ऊर्जा प्रदेश उत्तराखंड में बिजली के दाम भी बढ़ गए हैं और कटौती भी। ग्रामीण क्षेत्रों समेत छोटे शहरों में प्रतिदिन ४ से ८ घंटे तक बिजली कटौती हो रही है।
श्री आर्य ने कहा कि अघोषित बिजली कटौती से जनता त्राहिमाम कर रही है, 24 घण्टे लो वोल्टिज और बार बार ट्रिपिंग की समस्या से जनता बेहाल है। उत्तराखंड बिजली उत्पादन कर रहा है पर इसका लाभ दूसरे प्रदेश के लोगों को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले अप्रैल से लेकर हाल की बृद्धि तक एक साल के भीतर दूसरी बार बिजली की कीमतें बढ़ाकर सरकार ने ये सिद्ध कर दिया है कि वह जनता को लूटने का कोई अवसर नहीं गँवायेगी।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि पिछले एक वर्ष के अन्तराल में आम जरूरत की चीजों के दामों कई गुना बढ गए हैं। आम जरूरत की चीजों के दामों को नियंत्रित रखना केन्द्र व राज्य सरकार के बस में नही रह गया है। राष्ट्रीय स्तर पर रसोई गैस, पेट्रोलियम पदार्थ तथा खाद्य पदार्थों के लगातार बढ़ रहे दामों के बाद राज्य सरकार द्वारा बिजली की दरों में भारी वृद्धि कर जनता को मंहगाई के दोहरे बोझ से लादने का काम किया जा रहा है।
श्री आर्य ने कहा कि ये उत्तराखंड का दुर्भाग्य ही है कि, यहाँ के जिन निवासियों ने बिजली परियोजनाओं के निर्माण के लिए गांव- शहरों और संस्कृति का अस्तित्व तक गवांया अब उन्हें ही महंगी बिजली खरीदने को मजबूर किया जा रहा है।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि उत्तराखंड राज्य निर्माण आन्दोलन के दौरान यंहा की मातृ शक्ति ने पुरजोर तरीके से शराब का विरोध किया था। पूर्व में राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में “नशा नही रोजगार दो” जैसे आंदोलन चले। उस राज्य में सरकार की प्राथमिकता शिक्षा न होकर शराब होना एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।
श्री आर्य ने कहा कि उत्तराखंड सरकार द्वारा लगातार बढ़ाई जा रही बिजली दरों में वृद्धि का फैसला आम नागरिक की जेब पर सीधा प्रहार है। यह वृद्धि विकास नहीं, शोषण का प्रतीक है।






