वरिष्ठ कुमाऊंनी गीतकार गोपाल दत्त भट्ट की रचनात्मकता यात्रा पर केंद्रित कार्यक्रम: “बाट लागि बर्यात” और “गरुड़ भरती कौसानी ट्रेनिंग” जैसे गीतों ने मचाया था धमाल

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हल्द्वानी। वरिष्ठ कुमाऊंनी गीतकार गोपाल दत्त भट्ट की रचनात्मकता यात्रा पर केंद्रित कार्यक्रम का आयोजन किया गया। “बाट लागि बर्यात” और “गरुड़ भरती कौसानी ट्रेनिंग” जैसे कालजयी गीतों के लिखने वाले वरिष्ठ गीतकार गोपालदत्त भट्ट के रचनात्मकता योगदान को सम्मानित करने के लिए तिकोनिया स्थित औरम स्कूल में “गीतों में धड़कता पहाड़” कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के संयोजक हिमांशु पाठक ने बताया कि वरिष्ठ साहित्यकारों के सम्मान की श्रृखला में यह छठा कार्यक्रम था। आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले पुराने गीतों मै गोपाल दत्त भट्ट के गीत बहुत लोकप्रिय थे।
प्रसिद्ध लोकगायिका श्रीमती वीना तिवारी ने भट्ट के कई गीतों को गाया है, उन्होंने कहा कि गोपाल दत्त भट्ट ने अपने गीतों में महिलाओं और मेहनतकश लोगों की भावनाओं को स्थान दिया है। साहित्यकार जगदीश चंद्र जोशी ने भट्ट जी की कविताओं की विविधता और विषयों पर अपनी बात रखी। उत्तराखंड भाषा संस्थान के सदस्य हयात सिंह रावत ने कुमाऊंनी भाषा साहित्य में भट्ट जी का सर्वाधिक योगदान है।
भाषाविद प्रो. दिवा भट्ट ने कहा कि गोपाल दत्त भट्ट जी ने अपने हिंदी और कुमाऊनी साहित्य में गांधीवाद – प्रकृति, राष्ट्रभक्ति, जनचेतना, प्रणय और स्त्री विमर्श जैसे विषयों को गहराई से पेश किया है। उनका कुमाऊनी साहित्य विश्व साहित्य के स्तर पर रखने लायक है।

कार्यक्रम के द्वितीय चरण में वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी ने गोपाल दत्त भट्ट का साक्षात्कार लिया और सवाल – जवाब के बीच उनके साहित्य के साथ व्यक्तिगत जीवन यात्रा को सामने रखा।

सभी उपस्थित साहित्यप्रेमियों द्वारा गोपाल दत्त भट्ट नागरिक अभिनंदन भी किया गया। इस कार्यक्रम को क्रिएटिव उत्तराखंड, पहरू और समय साक्ष्य द्वारा आयोजित किया गया। संचालन कवियत्री बीना फुलेरा ने किया।

इस कार्यक्रम में ऑरम स्कूल के प्रबंधक मणि पुष्पक जोशी, नवीन टोलिया, गजेंद्र “बटोही”, प्रो. प्रभात उप्रेती, निर्मल न्योलिया, दिनेश पंत, प्रकाश पुनेठा, डॉ. जगदीश भट्ट, कमल पाठक, दयाल पांडे, मदन बिष्ट, गोविंद बल्लभ बहुगुणा, दामोदर जोशी, हेम पंत, रचना शर्मा, सुनीता, वत्सल, अश्विन, मोहन जोशी, पंकज पंत, राजेंद्र उपाध्याय, लोककलाकार भास्कर भौर्याल, राजेंद्र प्रसाद आदि उपस्थित रहे।

उल्लेखनीय है कि गोपाल दत्त भट्ट अपने साहित्य में लोक से निकली संवेदनाओं को बहुत गहराई से प्रस्तुत करते हैं। उनकी रचना-यात्रा में गहरे सामाजिक संदर्भ हैं तो प्रेम-विछोह, विरह, संघर्ष, विद्रोह, चेतना के स्वर भी हैं। उन्होंने कुमाउनी और हिंदी में जितना भी लिखा वह एक तरह से आमजन की भावनाओं का स्फुटन है। उनकी गीत-कविताएं हमेशा आम लोगों का प्रतिनिधित्व करती हैं। गोपालदत्त भट्ट जी का बड़ा परिचय उनका कवि रूप है। उन्होंने साठ-सत्तर के दशक में बहुत सारी कालजयी कुमाउनी कविताओं-गीतों की रचना की। उनकेे गीत एक समय में आकाशवाणी में बहुत लोकप्रिय हुये थे। एक पीढ़ी आज भी उन गीतों को सुनकर उस समय को याद करती है।

आकाशवाणी में प्रसारित गीतों के अलावा गोपालदत्त भट्ट का कुमाऊँनी और हिन्दी कविता की एक लंबी रचना-यात्रा रही है। उनके हिदी में ‘वक्त की पुकार’, ‘गोकुल अपना गांव’, ‘आदमी के साथ’, ‘गहरे पानी पैठ’ कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कुमाउनी में ‘धर्तिक पीड़’, ‘अगिन आंखर’, ‘फिर आल फागुण’, ‘हिटने रवौ-हिटने रवौ’ चर्चित रहे हैं। उन्होंने ‘बुरांस’ काव्य संकलन, सुमित्रान्दन पंत स्मारिका और ‘हिमालय बंधु’ साप्ताहिक का संपादन किया। उनकी कुमाऊँनी कविताओं का हिन्दी अनुवाद ‘गोमती-गगास’ और ‘गोपालदत्त भट्ट की एक सौ कविताएं’ नाम से मथुरादत्त मठपाल ने किया है। अनेक संकलनों एवं पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख, कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य, यात्रा वृतांत, कहानियां प्रकाशित हुयी हैं।

मूल रूप से बागेश्वर जनपद की ग्रामसभा नौटा (कटारमल), गरुड़ के रहने वाले गोपालदत्त भट्ट का जन्म 12 दिसंबर, 1940 को हुआ था। उनका सामाजिक चेतना के आंदोलनों में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। सर्वोदय कार्यकर्ता के रूप में वह ‘लक्ष्मी आश्रम’ कौसानी से जुड़ गये। यही से 1963 में सर्वोदय सम्मेलन में भाग लेने इंदौर गये। वहां से उन्होंने मध्य प्रदेश के सुदूर क्षेत्रों में सर्वोदयी आंदोलन में हिस्सेदारी की। उत्तराखंड में कार्यरत कई सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक संस्थाओं से आप लंबे समय तक जुड़े रहे।

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