उत्तराखंड की आशा वर्कर्स का सीधा आरोप: आंदोलन तोङने के लिए गुटबाजी की कोशिश कर रही है सरकार, सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिलने तक जारी रहेगा आंदोलन

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हल्द्वानी। आशा वर्करों की अनिश्चितकालीन हड़ताल आज पाँचवें दिन में प्रवेश कर गयी। आशाओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा और न्यूनतम 21 हजार वेतन लागू करने, जब तक मासिक वेतन और कर्मचारी का दर्जा समेत बारह सूत्रीय मांगों और आशाओं की समस्याओं का समाधान करने के लिए चल रहे आंदोलन के तहत आशा वर्कर्स ने सभी स्थानों में ऐक्टू से संबद्ध उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन के बैनर तले पांचवे दिन भी जोरदार धरना प्रदर्शन किया।
उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन की ओर जारी बयान में कहा गया कि, “आशा वर्कर्स के आंदोलन से बौखलाकर सरकार आशाओं की एकता को तोड़ने की कोशिश कर रही है जो कि बेहद शर्मनाक है।”आशाओं की एक ही मांग है,पक्की नौकरी, पूरा वेतन और सामाजिक सम्मान आशाओं को दे सरकार।”
कहा गया कि, “आशाएँ गर्मी, जाड़ा, बरसात हर मौसम में अपनी सुरक्षा की परवाह किये बिना आशाएँ स्वास्थ्य विभाग के कार्यों में जुटी रहती हैं। कोरोना के समय जब सब लोग घरों में कैद थे आशाओं ने जागरूकता का काम किया। होना तो यह चाहिये था कि आशाओं को इसका श्रेय देते हुए मासिक वेतन दिया जाता लेकिन इसके बजाय सरकार की उदासीनता और गलत नीतियों के चलते आशाओं को हड़ताल पर विवश होना पड़ा है। यह सरकार की नाकामी है इसलिए सरकार को तत्काल आशाओं की माँगों को मानते हुए उनको मासिक वेतन और कर्मचारी का दर्जा देने की बात मान लेनी चाहिए।”आशा नेताओं ने कहा कि, ” यह महिला विरोधी सरकार है। यह सरकार महिला श्रम का खुला शोषण कर रही है। लेकिन आशाओं का शोषण अब नहीं चलेगा, आशा वर्कर्स एकजुट होकर संघर्ष के बल पर अपना अधिकार हासिल करके रहेंगी।”
इस अवसर पर कमला कुंजवाल, रिंकी जोशी, विमला, रीना, भगवती, उमा,अनुराधा, आशा, हेमा,गीता, यशोदा, हंसी, चम्पा, सरोज आदि मौजूद रहीं। समर्थन में गौलापार से प्रधान अर्जुन सिंह भी पहुँचे।

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