सागर के दोहे………..

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सागर के दोहे………..

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जगदीश्वर………..

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१:- अरुणिम पूरब की दिशा ,
विहग कर रहे गान ।
अनुपम प्राची की हँसी ,
होता तेरा भान ।।

२:- अनुपम तेरा कृत्य है ,
ओ जगती के तात ।
छुपती है रजनी सदा ,
आता नवल प्रभात ।।

३:- वश में मेरे है कहाँ ,
तेरा महिमा गान ।
रसना भोली है बहुत ,
शब्द मेरे नादान ।।

४:- तू जग में लाया मुझे ,
तू ही रख सम्भाल ।
मैं तुझको भजता रहूँ ,
चाहे रख जिस हाल ।।

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©️ डा० विद्यासागर कापड़ी

सर्वाधिकार सुरक्षित

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मित्रों को शुभ प्रभात

🙏 मित्रों को मेरा नमस्कार🙏

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