*भाजपा सरकार पर लगा 4600 करोड रुपए के दाल घोटाले का आरोप, कांग्रेस का दावा*

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नई दिल्ली। कांग्रेस ने गरीब परिवारों और सेना को दी जाने वाली दालों में भ्रष्टाचार के कालेपल का आरोप लगाया है। पार्टी का दावा है कि भ्रष्टाचार के कारण केंद्र सरकार को 4,600 करोड़ रुपये की चपत लगी है। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि दाल के खेल में बड़ा भ्रष्टाचार हुआ है। उनका कहना है कि बीजेपी सरकार ने 2018 में दालों की दलाई के लिए पुरानी टेंडर प्रक्रिया को बदलते हुए नई टेंडर प्रक्रिया जारी की जिसके कारण यह घोटाला हुआ। हालांकि, सरकार ने इसे मनगढ़ंत बताते हुए कहा है कि टेंडर प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है।
सिंघवी ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिडेट यानी नाफेड ने दालों की दलाई और उनकी पॉलिशिंग के लिए दाल मिलों के साथ जो करार किया, उसकी प्रक्रिया दोषपूर्ण थी। उन्होंने कहा कि इस पूर खेल में 4,600 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ। सिंघवी ने कहा कि पुरानी प्रकिया में नाफेड साबुत दलहन को खरीद कर दाल मिलों से उनकी दलाई, पॉलिशिंग और ढुलाई आदि की प्रक्रिया पूरी करता है। 2018 से पहले सरकार इस काम के लिए दाल मिलों को पैसा देती थी। इस काम के लिए सबसे कम पैसे की बोली लगाने वालों को ठेका दिया जाता था। नीलामी की इस प्रक्रिया को फ्लोअर रेट या लोअर रेट प्रोसेस के नाम से भी जाना जाता था।
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि आमतौर पर 100 किलो साबुत दलहन के बदले दाल मिलें लगभग 70-75 किलो दाल सरकार को लौटाती थीं, लेकिन नई प्रक्रिया में सबसे कम बोली की जगह आउट टर्न रेशियो सिस्टम लागू करते हुए कहा गया कि जो सबसे ज्यादा दाल वापस करेगी, उसे टेंडर दिया जाएगा। कांग्रेस का कहना है कि इस सिस्टम में खामी यह है कि इसमें इसमें कोई लोअर लिमिट नहीं रखी गई। यानी सरकार ने यह बंदिश नहीं लगाई कि न्यूनतम इतने किलो से कम बोली नहीं लगाई जा सकती। सिंघवी ने कहा, ‘सारा खेल इसी में है।’
कांग्रेस नेता ने कहा कि नई प्रक्रिया के बाद छोटी दाल मिलों के लिए टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने की गुंजाइश ही नहीं बची। केवल बड़ी कंपनियां ही इसमें बोली लगा सकती थीं और बड़ी कंपनियां आपस में मिलकर कम-से-कम दाल लौटाने की मात्रा तय करती हैं और बाकी बचा हुआ माल खुले बाजार में बेचकर मोटा मुनाफा कमा रही हैं।
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी कैग और भारत सरकार की एक ऑटोनोमस रिसर्च एजेंसी राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद ने इस प्रक्रिया की खामियों को उजागर करते हुए अपनी चिंताएं सामने रखी हैं। काउंसिल ने इस प्रक्रिया को बंद करने और इसमें कुछ बदलाव का सुझाव दिया था, लेकिन नाफेड ने उसे अनदेखा करते हुए अपनी उसी प्रक्रिया के तहत नीलामी जारी रखी।
हालांकि इन आरोपों के बारे में सरकार का कुछ और ही कहना है। ग्रामीण मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक, सीएजी की ऐसी कोई रिपोर्ट है ही नहीं। वहीं अधिकारियों का कहना था कि टेंडरिंग का कोई नया या पुराना सिस्टम नहीं है। ओटीआर सिस्टम 2017 से ही लागू है, जिसमें सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को टेंडर दिया जाता है। जहां तक सबसे कम बोली का सवाल है तो कुछ राज्य जरूर इस प्रक्रिया के तहत दाल मिलों से दाल लेते हैं। लेकिन ये राज्य दाल मिलों से सीधे तैयार दाल खरीदते हैं।

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