“मेरे देवदूत” पुस्तक समाज में सकारात्मक विचारों के संवहन में सहायक: डॉ सुधांशु त्रिवेदी

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दिल्ली। योग ध्यान अध्यात्म और मोटिवेशनल गुरु के रूप में देश विदेश में बेहद लोकप्रिय अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास के वरिष्ठ प्राध्यापक रमेश कांडपाल की पुस्तक “मेरे देवदूत” का भव्य लोकार्पण कार्यक्रम बाल भवन पब्लिक स्कूल मयूर विहार नई दिल्ली के सभागार में सम्पन्न हुआ। रमेश कांडपाल द्वारा लिखित पुस्तक जिसमें उन्होंने अपनी जीवन यात्रा के छोटे छोटे अनुभवों, प्रसंगों और उनसे हासिल की गई छोटी बड़ी सीखों को एक सूत्र में पिरोया है, अपनी यात्रा के सहयात्रियों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की है और उन्हें देवदूत की संज्ञा दी है ।
श्री कांडपाल का सानिध्य हमेशा ही सकारात्मक ऊर्जापुंज सरीखा होता है । उनकी सहजता, सरलता में जादुई आकर्षण है। अपने वक्तव्य में रमेश कांडपाल ने सभी श्रोताओं का स्वागत किया और कई बार भावुक होकर सबके प्रति आत्मिक भाव से अभिवादन किया। पैरामेडिकल इंस्टिट्यूट डी पी एम आई ने इस पुस्तक को प्रकाशित किया है ।
“मेरे देवदूत” का विमोचन प्रखर वक्ता व भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ सुधाशु त्रिवेदी,वरिष्ठ नेता डॉ महेश चंद्र शर्मा, उधोगपति के एल जैन, न्यास के पूर्व प्रबंध न्यासी सम्पत मल नाहटा व बाल भवन के निदेशक बी बी गुप्ता, प्राचार्य विविध गुप्ता के हाथों संपन्न हुआ। अपने वक्तव्य में डॉ सुधांशु ने पुस्तक में लिखी कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र किया। अपने अनुभवों से सीखने की तुलना में दूसरों के अनुभवों से सीखना अधिक लाभकर है। पश्चिम के जीवन और इतिहास की अवधारणा के इतर उन्होंने भारतीय संस्कृति पर गर्व करने की कई वजहें गिनाई। रामचरित मानस की चौपाइयों का उल्लेख करते हुए उन्होंने पुस्तक के कई अनुभवों को जोड़ा। पुस्तक में एक जगह रमेश कांडपाल ने लिखा है कि मैं अपने विद्यार्थियों से भी सीखता हूँ, इसी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉ सुधांशु ने वृहदारण्यक उपनिषद के श्लोक
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ के द्वारा शिष्य होने का अर्थ बतलाया । रमेश कांडपाल मूलतः अल्मोड़ा से आते हैं, देवभूमि और देवदूत का जिक्र होना तो स्वाभाविक था ।
यह अद्भुत संयोग रहा कि एक तरफ आध्यात्मिक और प्रेरक सकारात्मक ऊर्जापुंज और दूसरी तरफ समसामयिक विषयों सहित धर्म शास्त्रों में गहरी पकड़ रखने वाले सम्मोहक वक़्ता को मन्त्रमुग्ध होकर सुनते श्रोताओं से खचाखच भरा बाल भवन स्कूल मयूर विहार फेज 2 का विशाल हाल और पिन ड्रॉप साईलेंस के बीच लगभग 3 घंटे का जादुई रोमांचकारी अनुभव ने एक अलग तरह का इतिहास बना दिया ।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ महेश चंद्र शर्मा ने पुस्तक के अनुभवों को सबके लिए प्रेरणा स्रोत बताया। उन्होंनें कहा रमेश जी की यह पुस्तक सकरात्मक सृजन के द्वारा स्वस्थ और सुसंस्कृत समाज की संस्थापना का प्रयत्न बड़ा प्रयत्न है।
कार्यक्रम में सान्निध्य प्रदान कर रहे के एल जे ग्रुप के चेयरमैन कन्हैया लाल पटावरी जैन ने रमेश कांडपाल के साथ बिताए अपने अनुभवों को साझा किया और यह भी बताया कि आचार्य महाप्रज्ञ ने अपने उद्बोधन में रमेश कांडपाल को कल्याण मित्र से अलंकृत किया । उन्होंने बताया कि जैन समाज के बाहर से आने के बाबजूद रमेश कांडपाल जैन समाज का अभिन्न हिस्सा बने रहे हैं । इनकी सादगी व व्यक्तित्व देखकर ऐसा श्रावक बनने की इच्छा करती है।
पूर्व प्रबंध न्यासी अणुव्रत न्यास संपत मल नाहटा ने बहुत भावुक शब्दों में रमेश कांडपाल को पुत्रवत संबोधित किया और अपने अनुभव साझा किए । जिसमे उन्होंने बताया कि रमेश ने कभी भी अपनी अर्थव्यवस्था को प्राथमिकता नहीं दी और हमेशा समाज कल्याण में संलग्न रहे। संपतमल नहाटा और रमेश कांडपाल की यह जोड़ी इस मामले में अद्भुत रही कि देश के लगभग 3000 विद्यालयों और 4 लाख छात्रों को नैतिक मूल्यों और ध्यान से उनके जीवन में परिवर्तन लाने का प्रयोग हुआ।
बाल भवन पब्लिक स्कूल के निदेशक बी बी गुप्ता ने कहा कि रमेश काण्डपाल का व्यक्तित्व अनेक गुणों से युक्त है। मरे देवदूत पुस्तक लिखकर जो इन्होंने हम सबका सम्मान किया है सब ऋणी हैं।
श्रोताओं में प्रशासनिक अधिकारी, न्यायाधीश, साहित्यकार, संगीतकार , कॉर्पोरेट , फ़िल्म,चिकित्सा और शिक्षा जगत से जुड़े प्रबुद्ध जन उपस्थित रहे। कार्यक्रम का समापन रमेश कांडपाल द्वारा ध्यान के प्रयोग से किया गया।
बाल भवन पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य विविध गुप्ता ने सबका धन्यवाद किया एवम इस कार्यक्रम को अपने विद्यालय में करने का सौभाग्य समझ। पूरे जनमानस ने सुंदर व्यवस्था के लिए विद्यालय की भूरि भूरि प्रशंसा की।

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