सतीश पांडेय: लावारिस शवों का अपने खर्चे पर करते हैं अंतिम संस्कार, अब तक 700 से अधिक लावारिस शवों की कर चुके हैं अंतेष्टि

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रानीखेत। मानव जीवन में सबसे बड़ा धर्म व कर्म असहाय लोगों की सेवा करना है। विभिन्न शत कमों से जीवन को सफल तो बनाया ही जा सकता है। साथ ही एक मिसाल बनकर वह लोगों के लिए प्रेरणास्रोत भी साबित हो सकता है। पारिवारिक जीवन का निर्वाह करने के साथ समाज के बेसहारा लोगों की निःस्वार्थ भाव से सेवा करना मानव जीवन का सबसे बड़ा धर्म है। जिसकी मिसाल रानीखेत नगर के व्यवसायी सतीश चंद्र पांडे लावारिस शवों का अपने खर्चे में दाह, संस्कार कर दे रहे हैं। जीवन में मानव अनेक प्रकार से खबरे जनसेवा माध्यम मानव के से कर सकता है। नगर के व्यवसायी 55 वर्षीय सतीश चंद्र पांडे विगत दो दशकों से लावारिस शवों का अपने खर्चे में दाह संस्कार कर लोगों को मानव सेवा की प्रेरणा दे रहे हैं। सदर बाजार के पोस्ट ऑफिस के पास उनकी सिर्फ उन्हें प्रेरणा मिली की वह बड़ा होकर अपने खर्चे में ऐसे शवों का दाह संस्कार करेंगे। शिक्षा पूरी होने के सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान है। इसी में इनकी पत्नी लीला देवी का फर्नीचर का व्यवसाय है। धार्मिक प्रवृत्ति के सतीश पांडेय का कहना है कि बचपन में ही उन्होंने एक लावारिस शव को गीदड़ व कोव्वों को नोंच कर खाते देखा। इस घटना से उन्हें प्रेरणा मिली कि बड़ा होकर ऐसे शवों का अपने खर्चे से दाह संस्कार करेंगे। शिक्षा पूरी होने के बाद व्यवसाय प्रारम्भ किया। पत्नी के सहयोग से उन्होंने दो दशक पूर्व जन सेवा समिति बनाकर लावारिस शवों के दाह संस्कार का बीड़ा उठाया। उन्होंने बताया कि इसके साथ वह शवों के दाह संस्कार करने के लिए बांस की व्यवस्था अपने खर्च में भी करते है। नगर सहित लगभग 25 गांवों को निःशुल्क बांस उपलब्ध कराते हैं। बताया कि वर्तमान समय तक वह 700 से अधिक लावारिस शवों का दाह संस्कार कर चुके है। पुलिस, राजस्व विभाग व लोगों की सूचना पर वह बिना संकोच के मुक्तिधाम में पहुंच कर दाह संस्कार करते हैं। इस कार्य से उन्हें काफी संतोष मिलता है। नगर क्षेत्र में पांडे जी इस कार्य के लिए काफी चर्चित हैं। पांडे जी को लोग लावारिस शवों का मसीहा भी कहते हैं।
गांधी जयंती पर एक कार्यक्रम में विधायक प्रमोद नैनवाल ने सतीश पांडेय के सामाजिक कामों को देखते हुए उन्हें सम्मानित किया।

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