लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा से विधायक अरविन्द पाण्डेय की भी दावेदारी, आकृति सोसाइटी ने प्रधानमंत्री को भेजा पत्र

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हल्द्वानी। लोकसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियों के साथ ही उम्मीदवारों ने दावेदारी शुरू कर दी है। अब उत्तराखंड के पूर्व शिक्षा मंत्री व गदरपुर के विधायक अरविन्द पांडेय के लिए तमाम संगठन लामबंद होने लगे हैं। इतना ही नहीं सामाजिक कामों में आगे रहने वाली सामाजिक संस्था आकृति ने इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विस्तार से पत्र भेजा है।
कहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में नैनीताल ऊधम सिंह नगर लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी के रूप में चयनित किए जाने हेतु अरविन्द पाण्डे वर्तमान विधायक, गदरपुर विधानसभा क्षेत्र का नाम का प्रस्ताव प्रेषित कर रहे है। अरविन्द का जन्म बाजपुर शुगर पफैक्ट्री में कार्य करने वाले एक श्रमिक के परिवार में हुआ। अरविन्द पाण्डे बाल स्वयंसेवक है। संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष के साथ ही उन्होंने कुछ समय तक संघ के प्रचारक के रूप में भी कार्य किया है। वे भारतीय जनता पार्टी के एक सच्चे सिपाही है तथा पार्टी द्वारा जो भी दायित्व समय-समय पर उन्हें दिए गये उनका ईमानदारी से निर्वहन उनके द्वारा किया गया है। अरविन्द पाण्डे में अविभाजित उत्तरप्रदेश में बाजपुर नगरपालिका के आयक्ष के रूप में निर्वाचित होकर सबसे युवा नगरपालिका अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त किया। उत्तराखण्ड राज्य गठन के पश्चात सम्पन्न हुए सभी विधान सभा चुनावों में अरविन्द पाण्डे ने विजयश्री प्राप्त की। दो बार बाजपुर विधानसभा क्षेत्र से तथा तीन बार गदरपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए हैं। श्री पाण्डे पार्टी में उन चुनिदा विधायकों में से हैं,जो राज्य गठन के पश्चात लगातार निर्वाचित हो रहे है। 2017 में जब श्री पाण्डे लगातार चौथी बार विधायक बन तो पार्टी नेतृत्व ने कैबिनेट मंत्री का दायित्व उन्हें सौंपा। विद्यालयी शिक्षा, संस्कृत शिक्षा, पंचायती राज खेल एवं युवा कल्याण मंत्री के रूप में पूरे पांच वर्ष श्री पाण्डे में कार्य किया। इन विभागों के मंत्री रूप में किए गये कार्यों में उनकी आमजन की समस्याओं एवं आवश्यकत्ताओं को लेकर समझा स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।
शिक्षा मंत्री के रूप में सबको समान शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराने के लिए उनके द्वारा किए गये कार्य मील का पत्थर है। राज्य के सरकारी तथा निजी विद्यालयों में एन०सी०ई०आर०टी० की पुस्तकों को लागू करने का उनका निर्णय ऐतिहासिक था। इस निर्णय से जहां बच्चों के बस्तों का बोझ कम हुआ वही अभिभावकों को भी कुछ निजी विद्यालयों में महंगी पुस्तकों के नाम पर हो रही लूट से भी छूट मिली।

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