वनों को दावाग्नि से नहीं बचाया तो भावी पीढ़ी को मिलेंगे नंगे पहाड़: नवीन चंद्र पंत

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चंपावत । हवा पानी के स्रोत हरे-भरे जंगलों को दावाग्नि से जो नुकसान होता है उसकी भरपाई लंबे समय तक भी नहीं हो पाती है। जंगलों को बनाने में पीढ़ियां गुजर जाती है, लेकिन आग लगने पर एक झटके में हमारे पूर्वजों के प्रयासों में पानी पड़ जाता है। वनों में मानवीय दखल ने स्वयं मनुष्य को शुद्ध हवा व पानी से मोहताज कर दिया है । इन तमाम परिस्थितियों को देखते हुए यदि हरे भरे जंगलों को आग से बचाने के लिए सामूहिक प्रयास नहीं किए गए तो हम अपनी भावी पीढ़ी के लिए नंगे पहाड़ और रेगिस्तान छोड़ जाएंगे।

इन भावनाओं से अभिभूत डीएफओ नवीन चंद्र पंत ने वन विभाग एवं मीडिया कर्मियों के बीच संवाद स्थापित करने की नई एवं भावात्मक पहल शुरू की है। कहा कि सब कुछ ठीकठाक रहा तो मॉडल जिले में आने वाले समय में इसके परिणाम सामने दिखाई देने लगेंगे। उन्होंने वनों को बचाने में लोगों की भागीदारी न होने का भी खुलासा किया कि हमने उन गांव वालों से कभी संवाद स्थापित नहीं किया कि उनका वनों से क्यों पारंपरिक रिश्ता टूटा है? जबकि वनों में आग लगने पर वहीं लोग उसे बुझा सकते थे। उन्होंने वन एवं ग्रामीणों के बीच पुनः रिश्तों को पुनः स्थापित करने पर जोर देते हुए कहा कि पंचायती जंगलों में सूखे गिरे चीड़ के पेड़ों का पातन का अधिकार उसी गांव के जरूरत मंदो को दिया जाएगा । जो वन पंचायत अपने जंगलों को आग से बचाएंगे उन्हें प्रोत्साहित किया जाएगा। अब दावाग्नि को शासन द्वारा आपदा घोषित कर दिया है। वन विभाग ने सभी जंगलों को बचाने की योजना का विस्तार कर क्रू स्टेशनों की संख्या में वृद्धि की गई है। पीरूल को ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जोड़ा जा रहा है। वन पंचायत सरपंचों को प्रशिक्षण व आवश्यक किट उपलब्ध किए गए हैं ।
संवाद में मीडिया कर्मियों ने डीएफओ की इस पहल का स्वागत करते हुए कहा कि वनों को हम हर हाल में बचाने के लिए सामूहिक पहल को आवश्यक मानते हैं। इस कार्य में व्यापक स्तर पर जन जागरण करने में मीडिया कर्मी विभाग को अपना पूरा सहयोग एवं समर्थन देंगे । वनों को आग से बचाने का काम केवल वन विभाग अकेले नहीं कर सकता है। यह ऐसा मामला है जिसमें यदि थोड़ी सी लापरवाही बरती गई तो इसका अभिशाप हमें पीढ़ियों तक भुगतना पड़ेगा। मीडिया कर्मियों ने इस बात पर हैरानी जाहिर की कि सिविल
वनो में जहां राजस्व विभाग का पूरा एकाधिकार होता है, उसकी देखरेख करने वाले पटवारी एवं कानूनगो को जिनका गांव के लोगों पर प्रभाव एवं रोजमर्रा के जीवन में संवाद होता रहता है, यह लोग वनों को बचाने में कोई मदद नहीं करते हैं जबकि वह चाहे तो गांव के लोगों का पूरा सहयोग इस कार्य में प्राप्त कर सकते हैं । मीडिया कर्मियों ने उन कमियों को दूर करने की जरूरत बताई जो आग लगने के मुख्य कारक है। संवाद कार्यक्रम का संचालन उपप्रभागीय वनाधिकारी नेहा चौधरी सामंत ने किया। संवाद के दौरान पीपीटी के माध्यम से डीएफओ द्वारा वन विभाग के कार्यों की जानकारी दी।इस अवसर पर देवीधूरा के वन क्षेत्राधिकारी कैलाश गुणवंत, भिगराड़ा के हिमालय सिह टोलिया, रेंज के राजेश जोशी , चम्पावत के आरओ दिनेश जोशी आदि भी मौजूद थे।

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